Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 10
________________ __ पार्श्वनाथ का विवाह प्रभावती के साथ हुआ। तापस द्वारा जलाई अग्नि में से नाग-नागिन को जीवित निकाला जो कि प्राण त्यागकर भवनवासी देव इन्द्र-धरणेन्द्र तथा पद्मावती हुए। जिन्होंने सदैव प्रभु पार्श्व की सेवा की। इस घटना के पश्चात् प्रभु पार्श्व ने 'अज्ञान एवं पाखण्डों के चक्कर में पड़ी भोली जनता को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया।' राजा कुमारपाल के आग्रह पर हेमचन्द्राचार्य ने जैन साहित्य में इस अलौकिक ग्रन्थ की रचना ३९००० श्लोक में की लेकिन काल पर्यन्त आज ३१२८२ श्लोक ही शेष प्रस्थापित हुए। इस ग्रन्थ के अनेक ताड़पत्र अलगअलग ज्ञान भण्डारों में उपलब्ध है लेकिन सर्वप्रथम इसे संग्रहित व एकत्रित रूप में श्री जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर से वि.सं. १९९५ में प्रकाशित किया गया इसके पश्चात् इसका सम्पादन श्री चरणविजयजी ने किया किन्तु कार्य पूर्ण होने से पूर्व ही उनका कालधर्म (देवलोक) हो गया फिर मुनि श्री पुण्यविजयजी ने इस कार्य को पूर्ण किया। जयपुर चातुर्मास के दौरान प्राकृत भारती अकादमी से प्रकाशित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के प्रथम भाग पर साध्वीश्रीजी ने प्रश्नोत्तरी निकाली थी। उसी समय उन्होंने आगे के भागों का स्वाध्याय भी किया और पूछा कि संस्था से आगे के भाग कब तक प्रकाशित होंगे किन्तु हमारी ओर से असमर्थता जाहिर की गई। श्री गणेश ललवानी सा., जिन्होंने अपने अथक प्रयासों से यहाँ तक का अनुवाद किया वे अब इस दुनिया में नहीं रहे। तत्पश्चात् आदरणीय श्री डी.आर.मेहता सा. ने सीकर के एक संस्कृत विद्वान् पं. मांगीलालजी मिश्र को इस ग्रन्थ की मूल संस्कृत प्रति दी किन्तु एक-दो वर्ष वे अन्य कार्यों में व्यस्त रहे तत्पश्चात् उनका भी निधन हो गया। इसलिए साध्वीजी से अनुरोध किया कि आप आठवें, नवें व दसवें पर्व का अनुवाद कार्य कर देवें ताकि यह ग्रंथ जन-मानस तक स्वाध्याय हेतु पहुँच सके। आपश्री ने इस अनुरोध को स्वीकारते हुए इस कार्य को सम्पन्न किया। एकाग्रता व शांतचित्त से किये गये इस अनुवाद के लिए प्राकृत भारती अकादमी एवं श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर आपके हृदय से आभारी हैं। - डॉ० रीना जैन (बैद) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)

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