Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 21
________________ मानो ब्रह्मराजा को दूसरा हृदय हो, वैसे धनु नाम के मंत्री ने उनका यह दुश्चेष्टित स्पष्ट रूप से जान लिया। मंत्री ने विचार किया कि कभी चुलनी स्त्री स्वभाव के कारण अकार्य भी कर सकती है, क्योंकि सती स्त्रियाँ विरल होती है, परंतु जो दीर्घराजा का कोश और अंतःपुर सहित सम्पूर्ण राज्य विश्वास से घरोहर रूप से अर्पण किया हुआ है, वह जब विकार होने पर अकार्य कर सकता है तो चुलनी का अकार्य तो कोई गिनती में नहीं है । अब इस ब्रह्मदत्त कुमार का कोई विप्रिय न कर दे, यह विचार करने का है, क्योंकि पोषण करने पर भी दुर्जन मार्जार के समान कभी कोई अपना होता नहीं। ऐसा विचार करके मंत्री ने अपने वरधनु नाम के पुत्र को यह वृत्तांत ब्रह्मदत्त को ज्ञात कराने का एवं निरंतर उसकी सेवा में रहने की आज्ञा दी। मंत्रीपुत्र ने सर्व वृत्तांत ब्रह्मदत्त को ज्ञात कराया। तब उसने नये मदधारी हस्ति के समान धीरे धीरे अपना कोप प्रकट किया। अपनी माता का ऐसा दुश्चरित्र सहन न करता हुआ ब्रह्मदत्त एक दिन हाथ में एक कौआ और एक कोकिल को लेकर अंतःपुर में गया। तब इस पक्षी के समान कोई वर्णशंकर करेगा तो मैं उसका अवश्य ही निग्रह करूंगा । इस प्रकार कुमार वहाँ उच्च स्वर में बोला। यह सुनकर एकांत में चुलनी से दीर्घ राजा ने कहा कि मैं कौवा और तू कोयल है, ऐसा समझना । अतः यह कुमार अवश्य दोनों का निग्रह करेगा। देवी बोली “इस बालक के बोल से भयभीत मत होना ।" (गा. 123 से 131) किसी समय ब्रह्मदत्त पुनः एक भद्र जाति की हथिनी के साथ हल्की जाति के हाथी को लेकर पहले के समान ही मृत्यु सूचक वचन बोला। यह सुनकर दीर्घ ने चुलनी को कहा कि इस बालक का भाषण साभिप्राय है । चुलनी ने कहा कि कभी ऐसा भी हो, तो भी क्या ? एक बार हंसी के साथ बगुला को बांधकर अंतःपुर में ले जाकर ब्रह्मदत्त कहने लगा कि इसके समान कोई रमण करेगा तो मैं कदापि सहन नहीं करूँगा । यह सुनकर दीर्घराजा बोला, हे देवी! अंदर उत्पन्न हुई रोषाग्नि से बाहर निकलते धुएँ के उद्गार जैसी यह तेरी बालपुत्र की वाणी को सुन । यह कुमार बड़ा हो [10] त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)

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