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जाने से हाथी और हथिनी को केशरी सिंह के समान हमें अवश्य विघ्नकर्ता बनाएगा। जब तक यह कुमार कवचधारी न हो, तब तक विष के बालवृक्ष की भांति उसे नष्ट कर देना ही योग्य है। चुलनी बोली, ऐसे राज्य की धरोहर सम पुत्र को कैसे मारा जाय? क्योंकि तिर्यंच भी अपने प्राणों की भांति अपने पुत्र की रक्षा करते हैं।" दीर्घ बोला 'अरे रानी! यह पुत्र तेरा मूर्तिमान काल ही आया हुआ है, इसलिए तू उस पर मोह मत कर। मेरे होते हुए तेरे पुत्र होना कोई दुर्लभ नहीं है।' दीर्घ के ऐसे वचन सुनकर रतिस्नेह के परवश हुई चुलनी ने डाकण के समान पुत्र के वात्सल्य का त्याग करके, वैसा करना स्वीकार कर लिया। उसने विचार किया कि इस कुमार को मार डालना है, परंतु लोक में निन्दा न हो। तब काम का काम हो जाए और पितृ का तर्पण हो वैसा करना है। उसके लिए क्या उपाय करना? एक उपाय है उसका अभी विवाह करना बाकी है। अतः उसके विवाह के पश्चात् उसको निवास करने के लिए निवासगृह बनाने के बहाने एक लाक्षागृह (लाख का घर) बनवाया होगा। उसमें प्रवेश और निगमन गुप्त रीति से करे ऐसी रचना करवानी होगी और विवाह के पश्चात् जब इसमें वधु के साथ शयन करने जाय, तब रात्रि में अग्नि प्रज्वलित करनी होगी। इस विचार से दोनों सहमत हो गये। तब पुष्पचूला राजा की कन्या के साथ संबंध करके विवाह की सर्व तैयारी करने लगे।
___ (गा. 132 से 144) उनका यह क्रूर आशय धनुमंत्री को ज्ञात होने पर उन्होंने दीर्घराजा के पास जाकर अंजलीबद्ध होकर कहा, कि राजन्! मेरा पुत्र वरधनु कलाओं में निष्णात और नीतिकुशल है। वह अब से मेरे समान आपकी आज्ञा रूपी रथ की धुरा को वहन करने वाला हो। मैं वृद्ध वृषभ के तुल्य गमनागमन करने में अशक्त हो गया हूँ, अतः आपकी आज्ञा से किसी स्थान पर जाकर धर्मअनुष्ठान करूँगा। इस प्रकार मंत्री के ऐसे वचन से ‘यह मंत्री किसी अन्य स्थान पर जाकर कपट रचकर कुछ अनर्थ करेगा। ऐसी दीर्घ को शंका हुई। बुद्धिमान पर कौन शंका न करे?' पश्चात् दीर्घराज ने माया करके मंत्री से कहा कि 'चंद्र बिना रात्रि के समान आपके बिना हमारे इस राज्य का
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)
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