Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपणासी
[गाथा : २१६-२१९
is ... TER Kार ? पर्व: पांचसो तेईस योजन और आठसे गुणित ( उन्नीस) सर्थात् एकसौ बावनमेंसे
उनलाल भाग १०५२१६
- ५२३,३६ योलन ) प्रमाण दक्षिणसे पाकर गङ्गा नदी पर्वतके
तटपर स्थित गिलिकाको प्राप्त होती है ।।२१।।
हिमबंत-अंत-मणिमय-पर-कूड-मुहम्मि पसह - स्वम्मि।
पविसिप णिवाइ'पारा, दस-जोयन-नित्यरा य ससि-भवला ।।२१६।।
प्राय:-हिमवान् पर्वतके अन्तमें वृषभाकार मणिमय उत्तम फूट के मुबमें प्रवेशकर गंगाकी चन्द्रमाके समान भवत और दस योजन विस्तारवाली धारा नीचे गिरती है ॥२१॥
छल्लोयमेषक - कोसा, पनालियाए हवेवि दिक्वंभो' । 'आयामो में कोसा, तेरियमेरी च बहलसं ॥२१॥
|| ६ । को १ । को २ । को २ ।। मर्ष:- उस प्रणालीका विस्तार छह योजन और एक कोस (योजन ), लम्बाई दो कोस भौर गहल्य भी इसना ( दो कोस ) ही है ॥२१॥
• "सिंग-मुहकाण-जोहा-लोयग-मूवाविएहि' गो-सरिसो।
वसहो ति तेच भन्ना, रयणमई जीहिया तत्प ॥२१८t
पर्व':- वह प्रणाली सींग, मुख, कान, जिह्वा, लोचन ( नेष) और भृकुटि मादिकसे गौके सदृश है, इसीलिए उस रस्नमय भिमकाको "वृषम" कहते हैं ॥२१॥
पणुवीस' जोपणागि, हिमवते तत्व 'अंतरेतून ।
बस - भोमन - विस्थारे, गंगा -'कुंडम्मि भिवडये गंगा ॥२१॥
म :-वहाँ पर गंगा नदी हिमवान पर्वतको पच्चीस योजन खोड़कर दम योजन विस्तार वाले गङ्गाकुण्डमें गिरती है ।।२१।।
१. क. न. ६, य. उ. रा। २.१.१. य. उ. विमा । .क.ब. म. न. पापामा । ४. ब. क.च. तत्तियमेते। .. प. म. सिंह । .. क. प. य. उ. भूधामोरदिगासारितो। .... पगमोह। ६. क.न.प. उ. अंतरेदूणा। . द...क.ब. य. २. बस्मि ।