Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपण्णाती
[ गाया ! २५५६-२५६१ :–ोष स्थानोंमें बहुत प्रकारको अवगाहनासे अन्वित मत्स्य, मकर, शिशुमार, कछवा __ और मेंढक आदि अन्य जल-जन्तु होते हैं ।।२५५८।।
लवणसमुद्रको जगतो एवं उसको बाह्य-परिधिके प्रमाणका निरूपणNEPAL ... मलविस्स
दीव-जगवीए । अग्भंतर सिलवई, बाहिर - भागम्मि होधि वनं ।।२४५६।।
भू १२ । म ८ ।मु ४। ८। पर्य :-लवणसमुद्रको जगती जम्बूद्वीपकी जगसीके तद्दश है । अर्थात् जम्बूद्वीपकी जगतीके सदृश इस जगतीका भूमि विस्तार १२ योजन, मध्य विस्तार ८ योजन, शिखर ( मुख) विस्तार ४ योजन और ऊंचाई आठ योजन प्रमाण है। इस जगतोके अभ्यन्तरमागमें शिलापट्ट और बाह्यभागमें वन हैं ।।२५५९॥
पण्णारस - लखाई, इगिसोदि-सहस्स-जोमणाणि सहा । उपवाल-जुदेवक-सयं, बाहिर-परिषी समुद् - अगवीए ।।२५६०॥
१५८११३८ । लय :-इस समुद्र-जगतोकी बाल परिधिका प्रमाण पन्द्रहलाख इक्यासो हजार एक सो उनतालीस { १५८११३९ ) योजन है ।।२५६० ।।
_ विवाएं :--लवणसमुद्रका बाह्य सूची व्यास ५००००० योजन प्रमाण है । गापा के नियमानुसार इसकी परिधिका प्रमाण परिघि=Vला०४५ला.x१०=१५८११३८ योजन प्राप्त होते हैं और योजन मवशेष बनते हैं जो प्रायसे अधिक है मत: उसका एक अंक ग्रहण कर ३८ के स्थान पर ३६ कहे गए हैं।
वलयाकार क्षेत्रका सूक्ष्म क्षेत्रफल निकालनेकी विधिगणि-च्चिय सूचीए, इन्धिय-चलयारण' बुगुण-वासाणि । सोषिय प्रवसेस - कवि, पासक - कोहि पुषिणं ॥२५६१॥
१. इ. ब. क. प. य. उ. बलयाणि ।