Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयषण्णत्ती
[ गाथा : २७७५-२७७६ अपं :--उनको वायष्यादिक विविज्ञापोंमें स्थित द्वीपोंमें रहनेवाले कुमानुष शूकरकर्ण गते हैं। इसके अतिरिक्त पूर्वाग्निदिशादिकमें क्रमपाः गणनीय माउ पन्त रखीपोंमें कुभानुष इसप्रकार स्पत हैं । उष्ट्रकर्ण, मारिमुख, पुनः मार्जारमुख, कर्णशावरण, गजमुख, मार्जारमुख, पुनः मार्जारहुख और गोकर्ण, इन पाठोंमेंसे प्रत्येक पूर्वमें बतलाये हुए बहत प्रकारके पापोंके फलसे कुमानुष जीव सन्न होते हैं ॥२७७२-२७७४।।
पृश्वापर-परिणषोए, सिसुमार-मुहा तहा य मयरमुहा ।
पेटुसि रुप्य • गिरिभो, कुमानुसा काल - जनहिम्मि ॥२७७५॥
प:-काससमुद्रके भीतर विजयाके पूर्वापर पाश्वभागोंमें जो कुमानुष रहते हैं पे क्रमशः शुभारमुख मोर मकरमुख होते हैं ।।२७७५।
वयमुह' बग्धमुहक्खा, हिमवंत-णगस्स पुष्व-पश्चिमयो। पणिधोए बहुते, इमानुसा पाव : पारि ॥२.81914
:-हिमवान-पर्वतके पूर्व-पश्चिम पार्षमागोंमें रहनेवाले कुमानुष पापको उदयसे मशः वृकमुख और व्याप्रमुख होते हैं ॥२७७६।।
सिहरिस्स 'सरधनुहा, सिपाल-क्यमा कुमाणुसा हॉति ।
पुख्वाबर - पणिधीए, जम्मतर - दुरिय - कम्महि ॥२७७७॥
पर्ष :-शिखरीपर्वतके पूर्व-पश्चिम पाश्वंभागोंमें रहनेवाले कुमानुष पूर्व जन्ममें किये हुए एकर्मोसे तरक्षमुख ( अक्षमुख ) और शृगालमुल होते हैं ॥२७७७।।
गोपिक - भिगारमुहा, कुमामुसा होलि प - सेलस्स ।
पुष्वावर - पभिधोए, कालोदय - मलाहि - दीवम्मि ॥२७७६।। मचं :-विजयाधपर्वतके पूर्वापर प्रणिधिनागमें कासोदक-ममुद्रस्य द्वीपों में क्रमश: दीपिकपौर भृङ्गारमुख कुमानुष होते हैं ॥२७७८||
कालोदकके बाह्यभागमें स्थित कुमानुष टोपोंका निरूपणतस्सि शाहिर - भागे, तेत्तियमेचा कुमालसा दीवा । पोखरणी • बाबीहि, कप्प • बुमेह पि संपुण्णा ॥२७७६।। १. ६. ब. २. बहमुहम्ममुहमको, ग. क. अपमुहवं मुखो। २. स. प. क. ब.उ. परमरहा। .
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