Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाषा : २७६७-२५६१ ] पत्थो महाहियारो
[ ७४४ प :-शेष स्थानोंमें मगर, शिशुमार, कछुआ और मैकक मादि जमकर जीव बहुत प्रकारको अवगाहनासे संयुक्त होते है ।।२७८६।।
एवं हालसमुद्दो, संवेगं पवमिवो एत्य । सत्स' हरि - संस - जोहो विस्थार 'वणि सरह ।।२७६७।।
। एवं कासोरक-समुदस्स बण्णणा समता ॥५॥
पं:-इसप्रकार यहां संक्षेपमें कालसमुद्रका वर्णन किया गया है । उसके विस्तारका वर्णन करने में संस्मशत-जिह्वा-वाला हरि ही समपं है ।।२७८७।।
इसप्रकार कालोदसमुद्रका वर्णन समाप्त हुआ।
पुष्करवर दोपका व्यासपोक्लरवरोति बीवो, परिवेददि कालजलाणहि सयलं । जोयण - लाता सोलस, - जुबो पाकालेणं ॥२७॥
१५०००००। पर्ष:-इस सम्पूर्ण कामसमुद्रको सोलह लाल [ १६००००० ) योजन प्रमाण विस्तारसे संयुक्त पुष्करवरद्वीप मण्डलाकार वेष्टित किये हुए है ।।२७८८।।
पुष्करपरीपके वर्णनमें सोलह मन्सराधिकारोंका निर्देशमणुसोत्तर - घरमियरं, विलासं भरह-वसुमई सम्मि । काल - विभाग हिमगिरि, हेममयो तह महाहिमवं ॥२७६६।। हरि-रिसो पिसहयो, बिह-पीलगिरि-रम्म-वरिसाई। इम्मि'-गिरी हेरग्णव-सिहरी एरावको ति परिसो' य ।।२७९०। एवं सोसस - संक्षा, पोपहर- बोधम्मि. अंतरहियारा। एहं ताण सम्प, 'गोयामो प्रामपुवीए ॥२७९१॥
.ब.क... परिवार।
... क. प. न. सरस। २. ..ब. क. . . पग्लियरे। ४... सम्म । ....बरिसा । ...न, क. ब...बोमामि ।