Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 804
________________ गादा : २९०१-२९.३] पालो महाहियारो [ ४७७ प्र:-बार, शून्य, नो एक, आठ, नौ और एक, इस अंक क्रमसे जो संम्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसौ पपतर माग अधिक उत्तम पत्रकूट तथा सूर्य पर्वतकी मध्यम लम्बाईका प्रमाण (१२०१९०४३सयो.) है ।।२२००। १९८०९५०+ at-१९८१९०४यो । दोनों पर्वतोंको अन्तिम और दो देशोंकी आदिम लम्बाईणव-पन-अनुग-पर-गब-एवं मंसा प हॉखि चुलसीरी। मंत सोम गिली माती... हासपासकाबविए ।।२९०१॥ १९८२२५ पर्च-नी, पाच, माठ, दो, पाठ, नौ और एक, इस अंक क्रम से जो संख्या उत्पन्न हो उत्तने योजन मोर पौरासी भाग अधिक दोनों पर्वतोंकी अन्तिम तया वल्गु (गन्धा ) और कच्छकावती देशको प्रादिम लम्बाई (१९८२ER पो.) है ॥२०॥ १९८१९०४१६४११-१९५२६५६, यो। दोनों देशोंसी मध्यम लम्बाईसम-बम-तिम-ग-मन-मन-एक अंसा व गास माहिय-सायं । मरिमालय पोह', वागूए कालावदिए ॥२६०२॥ १९६२३०७ । । मर्ग:सात, शून्य, तीन, दो, नो, नौ और एक, इस अक कारसे जो संस्था उत्पन्न हो उतने योजन और एकसो रालीस भाग अधिक बल्गु ( गन्धा ) एवं कच्छकावतीको मध्यम लम्बाईका प्रमाण ( १६१२३०५१ यो० ) है ।।२६०२।। १६२५६A: +६४०१५-१६२३०१ यो । दोनों देशोंकी अन्तिम मौर दो रिभंगा मषियोंकी पादिम सम्बाईपग-पच सग-नागि-सं-सभ-मोत्रिय प्रसासरि -महिव-सवं । कोई विषयानंत, माविल्ले दोसु सरिपानं ॥१९०३।। २०.१७५५ । । बर्ष:-पांच, पाच, सात, एक. न्य, अन्य पौर दो इस अंक कमसे यो संख्या उत्पन हो उतने योजन और एकसो छधान भाग अधिक दोनों देशोंकी मन्तिम नामा प्रावली पर फेनमालिनी नामक दो विमंग-नादियोंकी बादिमसम्बाईका प्रमाण (२०.१७५६१ योजन है। ११.३॥ १९९२३.1+En.t२००१७५५६योजन है।

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