Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 827
________________ ८०० 1 तितोपपणती [ गापा : २९६९-२९७२ मरतादिक व अन्तराधिकारमरह-पसुपर पहदि, जाव य एराबवो ति अहियारा । बंदोषे उत्त, सर्व तं एत्य पतम् ॥२९६९॥ एवं गोबरबीन साल तर अधिकार समता ॥६॥ प :-जम्बूद्वीपमें भरतकोत्रसे लेकर ऐरावतक्षेत्र पर्यन्त जितने अधिकार कहे गये हैं, के ___सर यही पर भी कहे जाने चाहिए ।।२९६६ इसप्रकार पुष्करवर दीपके सब मन्तराधिकार समाप्त हुए ॥६।। मनुष्योंके भेदपर-राती साम, पन्नता भसिनी अपजसा । दय पबिह • भेद - दो, उपन्यादि मानुसे बसे ।।२९७०॥ ॥ एवं मेषो समतो ॥७॥ भई:-सामान्य मनुभ्य, पर्याप्त मनुष्य, मनुष्यिणी पौर पपर्याप्त मनुष्य, इन पार मेदोंसे युक्त मनुष्य राशि मानुषलोकमें उत्पन्न होती है ।।२६७०।। इसप्रकार भेदका कथन समाप्त हवा ।।७।। भनुष्योंको संख्याका प्रमाणरूवेगगा सेठी, समिंगुल • पहिल्स - तषिएहि । मूलेहि पविहत्तो, होवि सामण - घर - रासी ॥२६७१॥ प:-जगच्छणीमें पुण्यंगुलके प्रथम और तृतीय वर्गपूलका भाग देनेपर जो सम्व प्राप्त हो उसमें से एक कम कर देनेपर सामान्य मनुष्य-राक्षिका प्रमाण जात होता है ॥२९७१।। बाउ-म-पंच-सतह-नवय-पंचट्ट - सिक्य - म - नवा । ति-बजरक-महार, छ-क- पं ग:--बजका ॥२६७२॥ १. प. उ. सम्म एमत्त पनामा क. प्रज्वं पयस तवं ।

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