Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

View full book text
Previous | Next

Page 829
________________ २०२ } तिलोयपम्पत्ती [ गापा : २६७७-२६८१ मर्च :-मन्तीपज मनुष्य बोड़े हैं । इनसे संपातगुणे मनुष्य दस कुछ क्षेत्रोंमें और इनसे भी संख्यातगुणे हरिवर्ष एवं रम्यक क्षेत्रों में हैं ।।२९५६॥ वरिसे संखेग्मगुणा, हेरनवम्मि हेमवय • बरिसे। भरहेरावर - बरिसे, संम्मगुणा विहे य ॥२६७७।। प: हरिवर्ष एवं रम्यकक्षेत्रस्थ मनुष्यों में संस्पातगुणे मनुष्य हरण्यवत पोर हैमवतक्षेत्रमें है तथा इनसे, संख्यातगुगो परत एवं ऐरावत क्षेत्रमें और इनसे भी संख्यातगुणे विवेह क्षेत्रमें । है ।।२९७७॥ हॉति असंखेनगुणा, लदिमणुस्सारिण से च सम्मुन्या । ततो बिसेस - महिम, माणस • सामग्य - रासी य ।।२६७८।। प्रर्ण :-विदेह क्षेत्रस्व मनुष्योंसे लळ्यपर्याप्त मनुष्य प्रसंस्थात गुणे हैं । ३ ( लम्ध्यपर्याप्त) सम्मूच्छन होते हैं । लध्यपर्याप्त मनुष्योंसे विशेष प्रषिक सामान्य मनुष्यरापि है ॥२६७८॥ पजसा गिबत्तियपन्यता लबिमा अपजसा । सत्सरि' • जुत्त • सबस्या - संग मेरेसु लविणरा ॥२७॥ अप्पबहुगं समतं ।।। पर्व :--पर्याप्त, नित्यपर्याप्त और सभ्यपर्याप्तके भेदसे मनुष्य तीन प्रकारके होते हैं। एकप्तो सत्तर मायंसण्ठोंमें ये तीनों प्रकारके मनुष्य होते है 1 अन्य (म्लेच्छादि) खण्डों में मध्यपर्याप्तक मनुष्य नहीं होते ।।२६५६ अल्पबहुत्वका कथन समाप्त हुमा ।। मनुष्योंमें गुणस्थानादिकोंका निरूपणपण-परण-प्रजाखंगे, भरहेराववम्मि मिच्छ - गुमठाणं । प्रवरे वरम्मि घोड्स - परियंत कमाइ शेसति ।।२६८०॥ म :-भरत एवं ऐरावत क्षेत्रके भीतर पाच-पांच आर्यखण्डों में जमन्यरूपसे मिथ्यात्य ___ गुणस्थान और उत्कृष्ट रूपसे कदाचित् चोदह गुणस्थान तक पाये जाते हैं ॥२६८०॥ पंच-विदेो सहि- समस्जिद - सर - अन्जखंडए सबरे । छागणठाणे तत्तो, चोड्स - परिवंत बोसति ।।२९८॥ प्र:-पांच विदेह क्षेत्रोंके भीतर एकसौ साठ प्रार्यसाडोंमें अपन्य-रूपसे छह गुणस्थान मोर उस्कृष्ट रूपसे पोदह गुणस्पान तक पाये जाते है ॥२६ ॥ --- --- -- १.६. गुरुम्मि । २. प. सप्तरिग्जत ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866