Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपम्पत्ती [ गापा : २६७७-२६८१ मर्च :-मन्तीपज मनुष्य बोड़े हैं । इनसे संपातगुणे मनुष्य दस कुछ क्षेत्रोंमें और इनसे भी संख्यातगुणे हरिवर्ष एवं रम्यक क्षेत्रों में हैं ।।२९५६॥
वरिसे संखेग्मगुणा, हेरनवम्मि हेमवय • बरिसे।
भरहेरावर - बरिसे, संम्मगुणा विहे य ॥२६७७।।
प: हरिवर्ष एवं रम्यकक्षेत्रस्थ मनुष्यों में संस्पातगुणे मनुष्य हरण्यवत पोर हैमवतक्षेत्रमें है तथा इनसे, संख्यातगुगो परत एवं ऐरावत क्षेत्रमें और इनसे भी संख्यातगुणे विवेह क्षेत्रमें । है ।।२९७७॥
हॉति असंखेनगुणा, लदिमणुस्सारिण से च सम्मुन्या ।
ततो बिसेस - महिम, माणस • सामग्य - रासी य ।।२६७८।।
प्रर्ण :-विदेह क्षेत्रस्व मनुष्योंसे लळ्यपर्याप्त मनुष्य प्रसंस्थात गुणे हैं । ३ ( लम्ध्यपर्याप्त) सम्मूच्छन होते हैं । लध्यपर्याप्त मनुष्योंसे विशेष प्रषिक सामान्य मनुष्यरापि है ॥२६७८॥
पजसा गिबत्तियपन्यता लबिमा अपजसा । सत्सरि' • जुत्त • सबस्या - संग मेरेसु लविणरा ॥२७॥
अप्पबहुगं समतं ।।। पर्व :--पर्याप्त, नित्यपर्याप्त और सभ्यपर्याप्तके भेदसे मनुष्य तीन प्रकारके होते हैं। एकप्तो सत्तर मायंसण्ठोंमें ये तीनों प्रकारके मनुष्य होते है 1 अन्य (म्लेच्छादि) खण्डों में मध्यपर्याप्तक मनुष्य नहीं होते ।।२६५६
अल्पबहुत्वका कथन समाप्त हुमा ।।
मनुष्योंमें गुणस्थानादिकोंका निरूपणपण-परण-प्रजाखंगे, भरहेराववम्मि मिच्छ - गुमठाणं ।
प्रवरे वरम्मि घोड्स - परियंत कमाइ शेसति ।।२६८०॥
म :-भरत एवं ऐरावत क्षेत्रके भीतर पाच-पांच आर्यखण्डों में जमन्यरूपसे मिथ्यात्य ___ गुणस्थान और उत्कृष्ट रूपसे कदाचित् चोदह गुणस्थान तक पाये जाते हैं ॥२६८०॥
पंच-विदेो सहि- समस्जिद - सर - अन्जखंडए सबरे ।
छागणठाणे तत्तो, चोड्स - परिवंत बोसति ।।२९८॥
प्र:-पांच विदेह क्षेत्रोंके भीतर एकसौ साठ प्रार्यसाडोंमें अपन्य-रूपसे छह गुणस्थान मोर उस्कृष्ट रूपसे पोदह गुणस्पान तक पाये जाते है ॥२६ ॥
--- --- -- १.६. गुरुम्मि । २. प. सप्तरिग्जत ।