Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 834
________________ त्यो महाहियारो वही पाया : ३०००-३००३ ] [ ८०७ अर्थ :- मनुष्यों को एकसो एम्बीस भोगभूमियों ( ३० भोगभूमियोंमें मोर ६६ कुभोगभूमियों) में केवल सुख और कर्मभूमियोंमें सुख एवं दुःख दोनों ही होते हैं ।२६६६॥ सुख-दुःखका वर्णन समाप्त हुआ ।।१३-१४।। सम्यस्व प्राप्ति कारण के परिबोहणं, केद्र सहावेण तासु बहू जावि भरणेण केई, केद्र जिपिदस्स महिम - सणदो । जिबिंब दंसणेणं, उवसम पहूवोरिंग के - भूमी सुहव केंद्र मदुस्सा बहू 'पयारं ॥। ३०००|| - · - रोहंति ।। ३००१ || सम्मतं गवं ।। १५ । किसने ही स्वभावसे, कितने ही कितने ही जिनेन्द्रभगवान की पर्व :-उन भूमियों में कितने ही मनुष्य प्रतियोधनसे, बहुतप्रकारके सुख-दुःखको देखकर उत्पन्न हुए शातिस्मरण कल्याणकादिरूप महिमा के दर्शनसे और कितने ही जिनबिम्बके दर्शनसे अपशमादिक सम्यग्दर्शनको ग्रहण करते हैं ।। ३००१ ॥ सम्यक्त्वका कथन समाप्त हुआ ।।१५।। मुक्तिगमनका अन्तर एक्क-समर्थ जहणं, दु-ति' समय-यहूबि जाव छम्मासं । बर-बिरहं भर जगे, उर्जार सिम्भंति अड समए । ३००२॥ · म :- मनुष्यलोक में मुक्ति-गमनका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उस्कृष्ट भ्रन्तर दोसीम समयादिसे लेकर छह मास पर्यन्त है। इसके पश्चात् बाठ समयों में जीव सिद्धिको प्राप्त करते ही हैं ॥३००२ स - मुक्त जीवोंका प्रमाण पक्कं असम, बलीसडवाल सहि यसवारे चुलसीवी मज चरिमम्मि घट्ट अहिय सयं ।। ३००३ || १६.... प्यारा २. प.निति । ३. ६. दुनियस । ४. द. ब. क. ज. उ. बुपे । -

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