Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोरपणती
[ गापा । २१-२६४६ अर्थ :-एक, बार, तीन, शून्य, मो, तीन और एक. इस अंक कमसे ओ संस्था उत्पन्न हो उतने योजन और बीस माग अधिक महापना एवं नलिन क्षेत्रको मध्यम लम्बाई (१३९.३४१R यो.) है ।।२४
१३६९७०९:१ - ४ - १३६०३४१. यो० ।
दोनों देशोंकी मन्तिम और दो विभंगा-वियोंको आदिम लम्बाईबो-पव-प्रह-नभ-अ-लि-एक्कं असा छात्सरहिय - सयं । बो - विनमा अतं, आबिल्लं वो विभंग - सरियाणे ॥२९४७॥
१२६०८९२७ मर्थ :-दो, नी, माठ, शून्प, पाठ, तोन मोर एक, इस अंक क्रमसे जो संस्था उत्पन्न हो उतने योजन और एकसो घपत्तर माग अधिक दोनों क्षेत्रोंको अन्तिम तपा सप्तजला एवं मौषध वाहिनी नामक दो विभंगा नदियोंकी मादिम लम्बाई । १३८०८६ यो० ॥२४७।। १३९०३४१७.-१४ -१३८०८९२११ पौ. ।
दोन विभंगा-नदियोंकी मध्यम सम्बाईपउ-पर-छलभ-पव-तिय'एक्कं मला व बाल-मझिमए । वोहतं तसजले, पोसहवाहीए पते ।।२९४८
१३०६४१ प्रपं:-बार, पाच, सह, शून्य, पाठ, तीन और एक, इस अंक क्रमसे को संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और चालीस माग अधिक तप्तजला एवं पोषधवाहिनी में से प्रत्येककी मध्यम लम्बाईका प्रमाण ( १३८०६५४६ यो०) है ॥२६४६।। १३८८२ - २३८ -१०६५४: योजन।
दोनों नदियोंकी अन्तिम और दो देशोंकी भादिम लम्बाईपण-मि-बाउ-पम-प्रारतिय-एक्का मसाय सोलसहिय-सवं । पो -मंग - नईगं, पं आबिल्ल बोसु विजया ॥२६४६॥
१३८०४१५ । ।
१. व... म. न. प्रतिएका