Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 789
________________ तिलोमती [ गाया । २०४५ - २८४१ म :- इन तीनों पर्वतोंके विस्तारको मिलाकर चौगुना करनेपर जो प्राप्त हो उतने [ ( ४२१०६+१६८४२ + ६७३६८९ } x ४ = ३५३६८४ ] योजन- प्रमारण सब कुल पर्वतों का समस्त विस्तार जानना चाहिए ॥२८४४ ७१२] इसुगाराणं विश्वंभं मे सहस्स जोयगया । - दो . तं पुन्यम्मि बिमिस्सं बोबड सेल कद्ध सिवो ॥२६४५॥ २००० अर्थ :-दोनों इष्यकार पर्वतों का विस्तार दो हजार योजन प्रमाण है। इसको पूर्वोक्त कुल पर्वतोंके समस्त विस्तार में मिला देनेवर पुष्कराराद्वीप पर्वतरुद्ध क्षेत्रका प्रमाण ( २००० + ३४३६८४८ - ३५५६४ योजन ) प्राप्त हfo जोयण-सक्त-तिवयं, पगन्ज सहस्त इत्पाणिपि । सीबि भाषा गिरि-कद्ध विवीए परिमाणं ।।२८४६ || ३५५६८४ । ६ । अर्थ :- पर्वत-रुद्ध क्षेत्रका प्रमाण तीन लाख पचपन हजार छहसो चौरासी योजन श्रीर चार भाग अधिक (३४५६८४६६ योजन ) है ।।२८४६ ॥ भरतादि क्षेत्रोंके आदिम, मध्यम और अन्तिम विष्कम्म लानेका विधान प्राविम-परिहि-यहुवी चरितं इच्छिवान परिही । गिरि-रुद्ध - लिटि सोहिय, बारस खुद मे सहि भनिन ।। २८४७ ॥ सग-सग-सलाय - गुणिवं होवि पुढं भरह-यहूदि-विजयानं । इव पबेल दवा, तहि सहि तिविध नियमे ।। २६४६ ॥ · · - : -- पुष्कराद्वीप की घादिम परिषिसे लेकर मन्तिमान्त इच्छित परिधियोंमेंसे पर्वतरुद्ध क्षेत्र कम करके शेषमें दोसौ बारहका भाग देनेपर जो सध भावे उसको अपनी-अपनी कलाकासे गुणा करनेपर नियमसे भरतादिक क्षेत्रोंका वहाँ-वहाँ इच्छित स्थान ( आदि, मध्य और मन्त ) में तीनों प्रकारका विस्तारप्रमाण प्राप्त होता है ।।२८४७ - २८४८ ९१७०६०५ - ३५५६०४ - २१२२१ = ४१४७६२ ० ० का मादि वि० । - ग्रहवा भरहाविषु विजयार्ग, माहिर बम्मि भविमं च । सोहिय अत्र लक्ख हिवे, अपनी इच्छव पवेसे ॥२८४६॥ - —— - -

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