Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 798
________________ गाया : २८८२-२८८५ ] चतत्वो महाहियारो [ ७७१ मई:-इस (विवेहकी लम्बाई) मेंसे सीता सीतोदा मदिपोंका दो हजार योजन प्रमाण विस्तार घटा देनेपर जो शेष रहे उसके अचंभाग-प्रमाण कच्छा और पम्पमालिनी देशकी कनिष्ठ (पादिम ) लम्बाई है ॥२८॥ घर'-सत्तेनुक-गं, गव-एक्कक - कमेण जोयगया। छावण - कला बोह, भाभिक कालछलांसमलिभिAR, ११.१५ १९२१८७४। । पर्य :-पार, सात, बाठ, एक, दो, नो भोर एक इस मंक-क्रमसे को संख्या निर्मित हो उतने शेषन मोर छप्पन कसा अधिक कच्छा और पन्धमालिनीकी मादिम लम्बाई है ।।२८५२।। विरोधार्य :-(१८४५७४८१ - २...)२ - १९२१८७४१६४ योजन प्रमाण पादिम लम्बाई है। विजयादिकोंको विस्तार-वृद्धिके प्रमाणका निरूपणविषयावीणं पासं, तभागं इस • पुगिम्म तन्मूलं । गिन्हह तसो पुह पुह, बत्तीस - गुपं च कादूर्ण ॥२३॥ बारस-सुव--सएहि. भनिचूर्ण कन्छ' - ६ - मेलषितं । गिय - पिय - ठाणे बासो, अब - सरुवं पिरोहस्स ॥२४॥ प :-विजयादिकोंका को विस्तार हो, उसके वर्गको दससे गुणा करके उसका वर्गमूस ग्रहण करे । पश्चात् उसे पृथक-पृएक रसीससे गुणा करके प्राप्त गुणनफलमें दोसौ बारहका माग देनेपर जो सम्म आवे उसे कल्ला-देशके विस्तारमें मिसानेसे उत्पन्न राशि प्रमाण अपने-अपने स्थानपर वर्ष मिदेहका विस्तार होता है ।।२८० क्षेत्रोंकी वृद्धिका प्रमाणगव - जोपरणस्सहस्सा, पत्तारि सयागि भद्वतासं पि । अपन - कलाओ तह विषयागं होदि परिषढी ।।२८८५।। १४४८ | म :-विजयों ( क्षेत्रों ) की वृद्धिका प्रमाण नौ हजार चारसौ अस्तालोस योजन और छप्पन-काला अधिक है ॥२८५५।। १. ६, सातपट्ठ। २. स. ....... पिहे।। १. प. प. प. सम्यगुण ।

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