Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गांया : २८०१-२०११ ]
उत्पी महाहिश
[ ७७
यं :- पाँच हजार पांचसी ठतर योजन और एकसो चौरासी भाग प्रमाण देवारयोंकी वृद्धिका प्रमाण है ।।२८८६ ॥
विशेषाय : मा0 में प्रत्येक
[ ( ११६
अतःप्रमाण है ।
को कहा गया है, x १० × ३२] : २१२ = ५५७८३६योजन देवारण्यको वृद्धिका
विजयादिकों को आदि, मध्य और अन्तिम लम्बाई निकालने का विधानखिवेज्ज तं होदि ।
हे
विजयादोनं आदिम मझिम-बीहं मभिम दोहे' तं शिवम् भंत बीसं ॥ २८६॥
•
अर्थ :- विजयादिकों की मादिम लम्बाई में उपर्युक्त वृद्धि प्रमाण मिला देनेवर उनकी मध्यम लम्बाईका प्रमाण धौर मध्यम लम्बाईमें वह वृद्धि प्रमाण मिला देनेसे उनकी मन्तिम लम्बाई का प्रमाण प्राप्त होता है ।। २८६६॥
कन्छा और गन्यमालिनी देशोंकी मध्यम सम्बाई-
वो दो-तिय-इ-तिय-नय-एक अंक साय । बालर एक सयं मझिल्लं कच्छ गंधमा लिरिए ।। २८६० ।।
कमेन
अर्थ:-दो, दो, तीन, एक, योजन पोर एकसो बारह भाग
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१९३१३२२ । ११३
तीन, नो मोर एक इस अंक क्रमसे जो संवधा उत्पन्न हो उतने अधिक कच्छा और गन्धमालिनी देशोंशी मध्यम लम्बाई
१६. २. द. ट्टि प ब ज भट्टसहि
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गाथा २८८२ में श्रादिम लम्बाई १२२१८७४५१६ योजन प्रमाण कही गई है म :-- १६२१८७४२३६ + २४४५३-१६३१३२२३३ योजन मध्यम लम्बाई ।
दोनों क्षेत्रोंकी मन्तिम और चित्रकूट एवं देवमाल वक्षारों की मार्दिन लम्बाईका प्रमाणनभ-सस-स-भ-ब-कमेण श्रंसा य ।
- सद्वि समं विजय-यु- वस्लार-णगानमंतमावित्वं ।। २८६१ ॥
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