Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 795
________________ ८ ] तिलोयपणती [ गापा : २८६६-२८७३ :-पुकरवरदीपमें विदेहोंके विनि, भइशान, विजय, भार, विमंगनदियां मोर देवारण्य पूर्व-पश्चिम सक विस्तृत है ११२८६८॥ ५४ : गादियों के लिए मिल रही गायक एकाणं परोक्क, मंदर - सेलाण घरगि • पद्धम्मि । जोयग - पउगवधि - सया, विक्वंभो पोतरमि ॥२८६६ प:-पुष्कराचंद्वीपमें इन मन्दर-पर्वतोमेसे प्रत्येकका विस्तार पिवी-पृष्ठपर नौ हजार पारसी (६४.0 ) योजन प्रमाण है ।।२८६६।। दो साला पग्णरसा, सहस्स-सत्य-सबटु-वणामओ 1 जोयच्या पुण्यावर वो एकेक - महसाला ॥२७॥ २१५७५८1 :-प्रत्येक भद्रवालका पूर्वापर विस्तार दो लाख पन्द्रह हजार सातसौ भट्ठावन (२१५७५८ ) योजन प्रमाण है ।।२८७०॥ उगवीस-सहस्सागि, सरा-सया जोयनागि पसगाउयो । घउ - भागो परोक्का का परसादि - विजयाणे ॥२८७१।। १९७९४ ।। प्र:-चौसठ विजयोंमेंसे प्रत्येकका विस्तार उनीस हजार सातसौ चौरानबे और चतुर्षभागसे अधिक अर्थात् १६७१४३ यो• है ॥२०७१।। • सहस्स - जोषणागि, बासा मसारयाण पक। पंच-सम-बोयगानि, विमंग - सरियाम स्मिो ॥२८७२॥ २००० । । at:-प्रत्येक वक्षारका विस्तार दो हजार ( २००० योजन और प्रत्येक विभमनदीका विस्तार पचिसौ { ५०० ) योजन प्रमाण है ॥२७॥ एपारस - सहस्साणि, पोषणया छस्सयागि प्रसीदी। परोपक पित्वारो, वारणाग दोहं पि ॥२६७३।। ११६८८ ।

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