Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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वार्मर ८५७
को नह
[ ७६५
अर्थ :- पुष्करा द्वीप में शुद्ध हिमवान् और शिरी पर स्थित पद्मदेह तथा पुण्डरीकके पूर्व और पश्चिम दिशासे निकली हुई नदियाँ घाट, एक छह पाठ पौर तीन इस अंक क्रमसे मो संख्या उत्पन्न उतने प्रमाण अर्थात् अड़तीस हजार सौ अठारह ( ३०६१८ ) योजन पर्वतपर जाकर क्रमश: प्रत्येक दक्षिण तथा उत्तर दिशाको बोर जाती हैं ।। २८५५-२६५६ ।।
पुष्करार्धद्वीप में स्थित मेरुम्रोंका निरूपण -
घावसंड - पवष्टि दोन्नं मेरुण सम्बवण्णणयं । एस्थेव य बच गयवंत' भद्दताल कुद - रहिवं ||२८५७||
अर्थ :- पातकीखण्ड में वरित दोनों मेघओंका समस्त विवरण गजदन्त, भरशाल मोर
कुरुक्षेत्रोंको छोड़कर यहाँ भी कहना चाहिए ।। २८५७।।
चारों गजदन्तोंको बाह्याभ्यन्तर लम्बाई
छक्क्क एक्क छग छपक्क जोयणाणि मेणं । भम्भंतर
भागट्टिय
( २०४२२१९ )
है ।। २६५६ ।।
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गमवंताणं
१६२६११६ ।
:- वह एक एक, छह, दो. छह और एक इस अंक क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने (१६२६११६) योजन प्रमाण मेषओंके अध्यन्तरभागमें स्थित चारों गजदन्तोको लम्बाई है । २६५८
उन्हानं ।। २८५८ ॥
नव-इमि-दो- दो-उ-भ-दो अंक कमेन जोवना दीहं ।
मेरु बाहिर गयवंतानं
चरम्हाने ।।२८४६
२०४२२१६ ।
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,
एक, दो, दो चार शून्य और वो इस अंक क्रमसे जो संख्या प्राप्त हो उतने योजन प्रमाण दोनों मेरुझोंके बाह्यभाग में स्थित चारों गजदन्तोंकी लम्बाई
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कुरुक्षेत्र के धनुष, ऋजुगारण और जीवाका प्रमाण
छतीसं लक्कारिण, घडसट्टि सहस्स-ति-सय-पणलीसा
जोवलयाणि पोश्वर
वीवर्स होदि कुछ चावं ।।२८६० ।।
११६८१३२ ।
१.व.व. क.अ.ज.गवंत समारुरहिया २.८. . . . . अंक मेराणि ।
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