Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
७५२ ]
तिलोयपणात्ती
[ गापा : २८००-२८०३ अभयोजन प्रमाण विस्तारयाला बनवण्ड है।
अभ्यन्तर त्या बाबभागमें पूर्वो वेदियों के समा वेदियोसे व्याप्त और उमरो वि 'माखुसोत्तर, समतदो दोणि होति तड-।
अग्नंतरम्मि भागे, वसंडो वेदि • तोरनेहि दो ॥२८००॥
प्रर्ग:-मानुषोतरपर्वतके ऊपर भी चारों ओर दो सटवेदियाँ हैं। इनके अभ्यन्तर भागमें वेदी तथा तोरणोंसे संयुक्त वनमा स्थित है ।।२०।।
मानुषोत्तरका बाह्य सूची ब्यास तथा परिषिविजणम्मि सेल-वासे, जोयन-लक्क्षाणि जिवलु पनदालं । तपरिमाणं सर्प, बाहिर - भागे गिरिवस्स ॥२८०१॥
४५०२०४। धर्म :-इस पर्वतके दुगुने विस्तारमें पैंतालीस लास योजन भिसा देनेपर उसकी माहसूचीका प्रमाण प्राप्त होता है ।।२०।।
१०२२४२+४५०.००=४५०२०४४ यो राह्य मास ।
एक्को जोयण - कोरी, लाला बाबाल तीस-च-सहस्सा । तेरस-चर-सत्त-सया, परिहीए पाहिएम्मि 'मदिरेशो ॥२८०२॥
१४२३६७१३ । भर्ग :-इस पर्वतको बाह्य-परिषि एक करोड़ बयालीस लाख छत्तीस हजार सातसो तेरह (१४२३६७१३) पोजनसे अधिक है ॥२८०२॥
अविरेयस्स' पमाणं, सहस्समेव व तोस अहियं । ति - समं पन इणि - हामो, यहंगुलाई अबा पंत्र ॥२०॥
दं १३३० । ह ।। १० । ज ५। प:-यह गाह्म-परिषि १४२३६७१ योजन प्रमाणसे जितनी अधिक है, उस अधिकताका प्रमाण एक हजार तीनसो तीस (१३.) षनुष, एक हाथ, इस बंगुल पोर पाच जो है ।।२८०३॥
......क. स. स. माणेसुत्ता। २. . . . . . परिमो।...क... उ. पवि. रेपस्म । ४. ६. अ. पहिय ।