Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपणती
[ गापा : २५५२-२५५३ इसो विषयका प्रतिपादन त्रिलोकसार गाथा १२२-४२४ में निम्नप्रकारसे किया
__ गया है
जिण-सिगे मापावी, बोरस-सोवनीक पण-कक्षा। मा-गरब-सरण-गुवा, करति जे पर - विवाहं पि ॥१॥ सण - विराहपा मे, रोसं पासोचति सागा। पंचाग्गि - मा मिण्या, मोरणं परिहरिय मुसि ॥२॥ बुम्मा प्रति पूषण • पुष्पा -वाइ-संकराचीहि । काय बागा वि कुवत, जीवा कुणरेसु ब्रायंते ॥३॥
पर्य :-जो जौन जिनसिंग धारणकर मायाचारी करते हैं, ज्योतिष एवं मायापि विधामों द्वारा आजीविका करते हैं. घनके पछफ है, तीन गारव एवं चार संज्ञामोंसे युक्त हैं. गृहस्पोके विवाह मादि कराते हैं. सम्यग्दर्शनके विराषफ है. अपने दोवोंकी पालोचना नहीं करते, दूसरोंको दोष लगाते हैं, जो मिसाइल पञ्चालितप तप । मौन बोरकर माहार करते हैं तथा जो दुर्भावना, अपवित्रता, सूतक प्रादिसे एवं पुष्पवती स्त्रीके स्पर्शसे युक्त तया ( 'विपरीत कुलोंका मिलना है लक्षण जिसका ऐसे ) जातिसकर आदि दोषों सहित होते हुए भी दान देसे हैं और ओ कपात्रोंको दान देते हैं, वे सब जीव मरकर मनुष्यों में उत्पन होते है। मोट :-जम्बूद्वीप पणती सर्ग १० गाया ५E-GE में भी यही विषय दृष्टव्य है।
कुमानुषोंका वर्णनगम्भावो ते मणुवा, युगलं बुगला सुहेन लिसरिया ।
तिरिमा समुच्चिदेहि, विणेहि पाति तारमा ॥२५५२।।
मर्ष:- मनुष्य और सियंच युगस-युगसरूपमें गर्नसे सुखपूर्वक निकसकर पात् जन्म लेकर समुचित दिनों में योवन धारण करते हैं ।।२५५२।।
बे-धणु-सहस्स-तुंगा, मंद-कसाया पियंग - सामलया । सम्बे ते पल्लाऊ, कुभोग - मूमीए बेळंति ॥२५५३।।
'-धणु-सहस्सन्तुमा
१. निमोसार हिन्दी, पं. टोग्रपमगी पृ. ॥२। २. प. प. म. ज. प. उ. अणुसहस्स ।