Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 741
________________ १४ ] तिलोरपणती [गाया : २६९८-९६७० मई:--म्यादि विजय, वक्षार, विभंगनदी भौर देवारण्य, इनके विस्तारके वर्गको दससे गुणित कर वर्गमूल निकालना, अपने-अपने उस वर्गमूसको पृथक्-पएक बसीससे गुणा करके प्राप्त लब्धमें दोसौ बारहका माग देनेपर जो प्राप्त हो उसे समादेशके विस्तारमें मिला देनेपर उत्पन्न राशि प्रमाण अपने-अपने स्थानमें अर्घविदेहका विस्तार होता है ॥२६६६-२६६॥ Arters - क्षेत्रीको चाकमा RAHATE चचारि सहस्साणि, पण-सय-धउसोदि गोयवाणं पि । परिपती' विजयाचं गावबा पादसिरे ॥२६६८।। ४५८४ । :-घातकीखण्डमें क्षेत्रोंकी वृद्धि चार हजार पाँचसो पौरासी (४५८४ ) पोजम प्रमाण जाननी चाहिए ॥२६६८॥ पा:-[{ ६.)'x}४३२२१२=५४ यो० क्षेत्रोंमें वृद्धिका प्रमाग। वक्षारपर्वतोंका वृद्धिका प्रमाणपत्तारि जोपणानं, सयामि सत्ततरीय असाणि । सदिठ कलाओ तस्मि, क्षार - गिरीण परिवही ।।२६६६।। ४ १२। प्र:-इस द्वीपमें वक्षार-पर्वतोंकी वृद्धिका प्रमाण पारसी सतत्तर योजन और साठ फला अधिक ( ) ॥२६६ll यपा:-[11(1000)x१. }x३२ ] + २१२=४७७.यो. व. वृद्धि प्रमाण । विभंग नदियोंमें वृद्धिका प्रमाणएकोन - वोस सहिब, एक्क-सर्प खोयगाणि भागा य । बावणा झग, विभा - सरिपाण परिवही ॥२६७०।। ११६।। .....क.अ. न. परिमार।

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