Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपणाती
[गाचा । २७००-२७०२ प: पुष्कर माशुवधा मनमा सामान बरो, सास और पांच इस अंक क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन मोर पूर्वोक्त बौनीस भाग अधिक ( ५७२४RY योजन प्रमाए) है ॥२६६६।।
५६८१५८४+४५८४=५७२७४२ योजन ।
दोनों क्षेत्रों की अन्तिम मौर दो बक्षार पर्वतोंकी आदिम लम्बाईछ-दो-सिय-सग-सग-पग, अंसा ता एक मत-दोहच। कमसो दो - विजयाणं, माबिन्लं एक्कसेल-मंदवने ॥२७००॥
५७७३२६ । । *:-कमश: दोनों क्षेत्रोंको अन्तिम तथा एकशेस धनग नामक वक्षार पर्वतकी पादिम लम्बाई छह, दो तीन, सात, सात और पाप इस अंक क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने पोर बीबीस भाग हो भधिक (५७७३२६:१४ योजन प्रमाण ) है ॥२७.०॥ ५७२७४२ +४५०४-५७७३२१११ योजन ।
दोनों वक्षार पर्वतोंको मध्यम लम्बाईतिय-णभ-अड-संग-मग-पण, भाणा ससोदिमत्त पोल। मपिझालय - दोहत, होवि पुई एपकसेल - इंदनगे ॥२०१॥
५७७८०३ । । :- एक शैल और पदमग नामक वक्षार-पर्वतमेंसे प्रत्येकको मध्यम लम्बाई तीन, शून्य, माठ, सात, सात बोर पांच इस अंक क्रमसे निर्मित जो संख्या है उतने पोजन मौर चौरासी भाग अधिक ( ५७७०० योजन प्रमाण ) है ।२७.१।।
५७७३२६.४४+४७ -५७७८० योजन ।
दोनों पर्वतोंको अन्तिम तथा दो देशोंको आदिम लम्बाईपभ-प्रबन्दु-मट्ठ-सग-पन,मसाबारस-कवी प्रसाणे । दोह' बोसु गिरीचं, आवो बप्पाए पोक्ललावपिए ॥२७०२॥
५७८२८०
...ब.क. उ. दोहरमोन्।