Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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पापा : २७२३-२७२५ 1 वजस्थो महाहियारो
[ ७३१ पर्व:-उपयुक्त दोनों नदियोंकी अन्तिम सम्बाई तथा महापप और सुरम्या नामक यो देशोंमेंसे प्रत्येककी आदिम लम्बाई चार, नो, शून्य, पाच, सात और दो, हम अंक-क्रमसे उत्पन्न संस्पासे एका पौरासी भाग अधिक अर्थात् २७५०६४ योजन प्रमाण है ।।२७२२।। २७५२१४३४ - ११६५३९ =२७५०६४ योजन !
दोनों देशों की मध्यम लम्बाईणभ-इपि-पण-णभ-सग-ग-मंक-कमे भागमेव पुटिवल्लं ।
- वित्यार, महपम्म - सुरम्मर विजयाणं ।।२७२३॥
__२७०५१० I I म :-महापमा और सुरम्या नामक देशोंको मध्यम लम्बाई शून्य, एक, पौष, शून्य, सात और दो, इस अंक क्रमसे जो संस्या निर्मित हो उससे एकसौ चौरासी भाग अधिक अर्थात २७०५१० योजन प्रमाण है ।।२७२३।।
२७५०६४१ - ४५०४२७०५१० योजन ।
दोनों देशों की अन्तिम और दो वक्षार पर्वतों की आदिम लम्बाईछ-हो-णव-पण-अधुग, भागा ता एव अत - बोहत । वो - विजयाणं प्रजम - वियडावबियाए आहिस्तं ॥२७२४।।
२६५६२६ ।।। मर्म:-उपयुक्त दोनों देशों को अन्तिम तथा अञ्जन और विजटावान् पर्वतकी आदिम लम्बाई छन्, दो, मो, पाप, छह और दो इस अंक क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उससे एकसौ पौरासी भाग भक्षिक भर्थात् २६५६२६३६ योजन प्रमाण है ॥२५२४।। २७०५१०१ – ४५८४=२६५९२६11 योजन ।
दोनों वक्षारोंकी मध्यम सम्बाईरणब-घर-पउ-पर-छ-दो, अंक-कमे ओपणारिण भागा य । बासष्टि दु - हर बीहं', मझिल्लं बोलु बक्यारे ॥२७२।।
___ २६५४४९ । । ।
१...ब.क.उ. सुषम्म
१..म.क. ज. उ. पोहा।