Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गापा : २७६१-२७६४ } उत्यो महाहियारो
एवं संवेगं, पावासो पपणियो विम्यो । वित्पार - वणमासु, का सती म्हारि - सुमई ॥२७६१॥
एवं धाइसंबस्स वगणा समसा ॥४॥ पर्व':-इसप्रकार संप में यहां दिव्य पातकोखण्डका वर्णन किया गया है। हमारी जसी बुद्धिवाले मनुष्योंकी मला विस्तारसे वर्णन करनेको शक्ति हो क्या है ? ।।२७६।।
सप्रकार घातकीख पडद्वीपका वर्णन समाप्त हुआ ।।४।।
कालोद समुद्रका विस्तारपरिवेषि' समुद्दो, कालोबो नाम पाई।
अस - साल - जोषणारिण, वित्थियो परकवालेणं ।।२७६२॥
म:-इस पातकोखण्डको पाठ साब योजनप्रमाण विस्तारवाला कालोद नामक समुद्र मण्डसाकार वेष्टित किये हुए है. २॥ १-३९
six si ki समुद्रको गहराई मादिटंकुनिकण्णायारो', सम्पत्य सहस्स - जोयणवगाहो । चिसोवरि - तल - सरिसो, पायाल - विक्मियो एसो ।।२७६३।।
पर्व:-टांकीसे उकेरे हुएके सदृश आकारवाला यह समुद्र सर्वत्र एक हमार योगन गहरा, पित्राषिवीके उपरिम तमभागके सदृशा अर्थात् समतल पोर पातालोंसे रहित है ॥२७॥३॥
समुद्रगत द्वीपोंको अवस्थिति बौर संन्यापटुताला दीवा, रिसामु बिदिसामु अंतरेसु ।
पउबोसम्भंतरए, बाहिरए सेतिया तस्स ॥२७६४॥
at:- इस समुद्रके भीतर दिशामों, विदिशाओं भोर मन्तर दिशाओं में पड़तालीस द्वीप हैं। इनमेंसे चौबीस द्वीप समुद्रके प्रम्यन्तरभागमें और चौबीस ही शहभागमें है ।।२७६४॥
-. . . . . . .१.... 8 परियडेवि । २. 1. उ. कुस्किरहाधारी ।