Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपगुती
[ गाया २५१७-२५६१
अर्थ :- दो हजार एकसौ पांच योजन और उन्नीससे भाजित पाँच भाग (२१०५ योजन) प्रमाण हिमवान् पर्वतका विस्तार समझना चाहिए ।। २५२६।।
महाहिमवंतं यचं, उ' हब हिमवंत-दब- परिमाणं ।
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जिसहस्त होदि वासो, महहिमवंतस्स बउगुणो वासो ॥ २५७॥
८४२१३३६८४ । ४ ।
अर्थ :- महाहिमवान् पर्वतका विस्तार प्रमाण हिमवान् पर्वतके विस्तारसे चोगुना अर्थात् ४२१ योजन है और निषधपर्वतका विस्तार महाहिमवान्पर्वतके विस्तारसे चौगुना अर्थात् ३३६८४ योजन है ।। २५६७ ।।
एवाणं सेलाणं, विक्लंभो मेलिकण चढ गुणियो । सव्वाण कुलगिरी/पुणे
अर्थ :- इन तीनों पर्वतोंके विस्तारको मिलाकर श्रोगुना करनेपर [ ( २१०+ ४२१+ ३३६८४६६ ) x ४ = १७६६४२२ योजन] सर कुलपर्वतोंके विस्तारका संकलन होता है ||२५||
इष्वाकार पर्वतों का विस्तार एवं पर्वतरुद्ध क्षेत्रका प्रमाण
दोनं इसुगारागं, विवसंभो होषि दो सहस्वाणि । तस्सि मिलिने भावडे गिरि
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२००० ।
१. . . . .
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लिविना ।। २५६६ ।।
:- दोनों इष्वाकार पर्वतों का विस्तार दो हजार (२०००) योजन प्रमाण है । कुलपर्वतोंके पूर्वकथित विस्तारप्रमारगमें इसको मिला देनेपर घातकीखण्डद्धोपमें सम्पूर्ण पर्वरुद्ध क्षेत्रका प्रमाण प्राप्त होता है ।। २५६६।।