Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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महाहिया
से तस्स अभय बघणं, वाचून व भागो सह सव्वे । पविसिम संधावारं, विजय
गाया : १३२५ - १३२१ ]
पयानानि कुब्बति ॥१३२५।।
अर्थ :- वे उसे अभय वचन देकर और ( उमी ) मागघदेवके साथ वे सब कटकमें प्रवेशकर विजयके लिए प्रस्थान करते हैं ।। १३२५ ॥ ०
चरतनु एवं प्रभावदेवको वश करना
पोतो वालि से जंति । जंषोवत्स पुढं, दक्बिर बहजयंत बारं ।।१३२६॥
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अर्थ :- फिर वे वहाँसे उपवनके बीच में होकर द्वीप प्रदक्षिणरूपसे जम्बूद्वीपके वैजयन्तनामक उत्तम दक्षिणद्वारके समीप तक जाते हैं ।। १३२६ ।।
दारम्मि जयंते, पवितिय सबरहिस्मि नकहरा ।
पुषं व कुणंति बर्स, वरतणु णामक्रिय - सरेगं ।।१३२७॥
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अर्थ :- वे चक्रवर्ती वैजयन्त द्वारसे लवण समुद्र प्रवेश कर पूर्वके सदृश ही अपने नामांकित माणसे वरतनु नामक देवको इसमें करते हैं ।। १३२७ ।।
तो आगंतूनं संभावारम्मि पबिसिक नं ।
stateur ध्यहेणं गच्छते सिषु वय वेबि ।।१३२८ ।।
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अर्थ :–पुनः वहसि बाकर और कटक में प्रवेश कर ढोपोवनके मार्ग से सिन्धु नदी सम्बन्धी वन-वेदिका की ओर जाते हैं ।। १३२८ ।।
पविसिय
पुरुषं व लवन - जलरासि ।
तीए 'तोरण दारं सिंधु जीए दाएं पविसिय साहति ते प्रभासतुरं ।। १३२९ ।।
भीतर जाकर वे चक्रवर्ती प्रभासदेवको सिद्ध करते है ।। १३२९ ।
:- उसके तोरण द्वार में प्रवेशकर और सिन्धु नदीके द्वारसे लवरण समुद्र की जलराशि में
१.ब. क.अ... संघावर २. सम्म ३ व ब. क. म. म. स. ठोरा।