Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा । २२९४-२२१७ ]
पउत्यो महाहियारो प्र:- अनेक जनपदों सहित. अठारह देशभाषाओंसे संयुक्त, हाय एवं अश्वादिकोंसे युक्त धौर नर-नारियोंसे पण्डित यह प्रायखण्ड रमणीय है ॥२२९३।।
क्षेमा-नगरी
सेमा - गामा लपरो, अमावस्स होवि मग्झम्मि ।
एसा प्रणाद-मिहणा, पर • रयणा खचिर - रमपिता ॥२२६४।।
मर्ग :-मार्यश्चण्डके मध्य में क्षेपा नामक नगरी है। यह अनादि-निधन है और उसम ___ रत्नोंसे अपित रमणीय है ॥२२१४।।
कणयमानो पायारो, समंसदो तीए होवि रमणियों। परिपालय - चारु, विविह - पवाया कलप्प - अवो' ॥२२६५॥
मर्ष :-इसके चारों पोर मार्गो एवं अट्टालयोंसे सुन्दर पौर विविध पताकापोंके समूहसे ___ संयुक्त रमणीय सुवर्णमय प्राकार है ।।२२६५।।
कमल • पण - मंडिगाए, संजसो मावियाहि बिडलाए । कुसुम - फल - सोहिदेहि, सोहिल्लं रविह • वहि ॥२२९६।।
मर्म:-यह प्राकार कमल-वनोंसे मण्डित विस्तृत बाईसे संयुक्त है और फूल तथा कलोंसे पोभित बहुत प्रकारके वनोंसे शोभायमान है ।।२२६६।।
सीए पमाण - गोयण, भबमस्ते वर - पुरीम विस्यारो । पारस - जोयण - मतं, दोहरी पक्खिणुतर विसासु ॥२२९७॥
अपं:-उस उत्तम पुरीका विस्तार प्रमाण योजनसे नौ योजन प्रमान और दक्षिण-उत्तर दिशामोंमें लम्बाई बारह योबन प्रमाण है ।।२२६७।।
१. ६.प.क.प. ग, उ. रमणिया। २......... ना।