Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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६४६ ]
आर्गक लवसमुह
चायायारो |
अस्थि लवणंबुरासी, जंबूदीवस्स समबट्टो सो जोग बेलल प्रमाण - बिचारो ॥ २४२८||
तिलोयपती
-: लवण समुद्र :
२००००० ।
अर्थ :- लवण समुद्र जम्बूद्वीपको खाईके आकार गोल है। इसका विस्तार दो लाख ( २००००० ) योजन प्रमाण है ।। २४२८६ ।।
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गावाए उवरि णावा, श्रहो महीं जह दिया तह समुहो । गयणे समंतदो सो, बेटु बि
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चक्कवाले
अर्थ :- एक नाव के ऊपर अधोमुखी दूसरी नावके प्रकार वह समुद्र चारों ओर प्राकाशमें मण्डलाकारसे स्थित है ।। २४२६ ।।
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९. ब ४. यट्टे ।
[ गावा २४२५ - २४३१
चित्तोबरिम तलादो कूडायारेण उवरि वारिणी । गम्मि बेट्टे हि ।। २४३० ॥
तस सय लोयणाई, ए
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७०० 1
॥२४२६||
रखनेसे जैसा आकार होता है, उसी
प्र : वह समुद्र चित्रा - पृथिवीके उपरिम-तलसे ऊपर बूटके आकार से भाकाशमे सातसी ( ७०० ) योजन ऊंचा स्थित है ।। २४३० ॥
उड़ते भवेदिहवं, जलमिहिनों जोमणा बस-सहस्सा । पणिहीए, विनशंभो दोणि लगवाणि ।। २४३१॥
चितावणि
१०००० | २००००० ।
अर्थ :- उस समुद्रका विस्तार ऊपर दस हजार ( १०००० ) योजन और चित्रापृथिवीकी प्रणिधिमें दो लाख ( २००००० ) योजन प्रमाण है ।। २४३१ ।।