Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिसोयपणसी [गाथा : १४४७-१४५० सुसमाइ संगसाई, गाइ रयणाबसीमो बसारि । रपनाई राणते, बलदेवा नवा पि१७
:-मूसल, सांगल (हल), गदा और रनावली ( हार ), ये भार रत्न सभी (नो) बलदेवों के यहां शोभायमान रहते है ॥१४४७।।
बसदेव प्रादि तीनोंकी पर्यायान्तर-प्राप्तिअभियान - गवा सम्मे, बलदेवा फेसबा गिवाण-गया । जलंगामी सम्बे, बलदेश फेसवा अधोगामी ॥१४॥
पर्व:-सब मलदेव निदान रहित और सत्र नारायण निदान सहित होते हैं। इसीप्रकार सब बलदेव ऊर्ध्वगामी ( स्वर्ग और मोक्षगामी ) तथा पर नारायण अधोगामी (नरक लाने वाले) होते है|
मिस्सेयसमट गया, 'हलिगो परिमो दुबम्हकप्प-नायो।
ततो कालेख मरो, सिकार किस्स तित्वम्मि mmen
म:-पाठ बलदेव मोका और प्रन्तिम बलदेव ब्रह्मस्वर्गको प्राप्त हुए है । अन्तिम यसदेव स्वर्गसे च्युत होकर कृष्णके तोप में (कृष्ण इसी भरतक्षेत्रमें पामामी चौबीसीके सोमहवें तीर्थकर होंगे) सिरूपदको प्राप्त होगा ॥१४४६।।
पढम - हरी सत्तमए, पंच मझुम्मि पंचमी एको।।
एकको तुरिमे परिमो, तदिए णिरए तहेव परिसत ॥१४५०॥
पर्य :-प्रथम नारायण सास नरकमें, पांच नारायण छ नरकमें, एक पांचवें भरकमें, एक ( सक्ष्मण ) चौथे नरक और अन्तिम नारायण (कृष्ण) तीसरे नरकमें गया है। इसीप्रकार प्रतिक्षों को भी गति जाननी चाहिए ।।१४५०।।
(सालिका ३७ अगले पृष्ठ ४१६ पर देखिये )
...अ, य, हरिण।