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________________ ४१९ तिसोयपणसी [गाथा : १४४७-१४५० सुसमाइ संगसाई, गाइ रयणाबसीमो बसारि । रपनाई राणते, बलदेवा नवा पि१७ :-मूसल, सांगल (हल), गदा और रनावली ( हार ), ये भार रत्न सभी (नो) बलदेवों के यहां शोभायमान रहते है ॥१४४७।। बसदेव प्रादि तीनोंकी पर्यायान्तर-प्राप्तिअभियान - गवा सम्मे, बलदेवा फेसबा गिवाण-गया । जलंगामी सम्बे, बलदेश फेसवा अधोगामी ॥१४॥ पर्व:-सब मलदेव निदान रहित और सत्र नारायण निदान सहित होते हैं। इसीप्रकार सब बलदेव ऊर्ध्वगामी ( स्वर्ग और मोक्षगामी ) तथा पर नारायण अधोगामी (नरक लाने वाले) होते है| मिस्सेयसमट गया, 'हलिगो परिमो दुबम्हकप्प-नायो। ततो कालेख मरो, सिकार किस्स तित्वम्मि mmen म:-पाठ बलदेव मोका और प्रन्तिम बलदेव ब्रह्मस्वर्गको प्राप्त हुए है । अन्तिम यसदेव स्वर्गसे च्युत होकर कृष्णके तोप में (कृष्ण इसी भरतक्षेत्रमें पामामी चौबीसीके सोमहवें तीर्थकर होंगे) सिरूपदको प्राप्त होगा ॥१४४६।। पढम - हरी सत्तमए, पंच मझुम्मि पंचमी एको।। एकको तुरिमे परिमो, तदिए णिरए तहेव परिसत ॥१४५०॥ पर्य :-प्रथम नारायण सास नरकमें, पांच नारायण छ नरकमें, एक पांचवें भरकमें, एक ( सक्ष्मण ) चौथे नरक और अन्तिम नारायण (कृष्ण) तीसरे नरकमें गया है। इसीप्रकार प्रतिक्षों को भी गति जाननी चाहिए ।।१४५०।। (सालिका ३७ अगले पृष्ठ ४१६ पर देखिये ) ...अ, य, हरिण।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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