Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा २१५५-२१५९ ]
महाहियारो
[ ५८१
अर्थ :- प्रचुर मार्गों एवं अट्टालिकाओं सहित और नाना प्रकारको ध्वजापताकाधोंसे संयुक्त वह वेदी द्वारक उपरिभागों में स्थित जिनेन्द्र भवनोंसे रमणीय है ।।२११४ ।।
गावक
SERCITUM,zaugaògnûmują - fint ( रोचरणवतंस' कुशे, सत्मिय गिरि वणणेहि जुवा ॥४२१५५ ।।
वर्ष :- उत्तम भद्रशासके मध्य में सीतानदी के दोनों किनारों पर स्वस्तिक [ एवं प्रजन] गिरिके समान वर्णनोंसे युक्त रोचन एवं प्रवतंसकूट नामक दिग्गजेन्द्र गिरि है ।।२११५ ।।
raft विसेसो एक्को, ईसाणिवस्स "वाहगो देवो ।
पामेणं
वसमत्रो, तेसु
लीलाए
धर्म :- विशेषता केवल एक ) यही है कि उन भवनों ईशानेन्द्रका श्रवण नामक वाहनदेव लीला पूर्वक निवास करता है ।। २१५६ ।।
जिन भवन निर्देश -
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सोवा तरंगिणीए, पुम्मि त जिमित मंदर
उत्तर
पासे,
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अर्थ :- गजदन्तके अभ्यन्तरमागमें सीतानदीकै पूर्व सटपर और मन्दरपर्वतके उत्तरपाश्र्वंभाग में जिनेन्द्र प्रसाद स्थित है ।।२१५७।।
पूर्वोक्त विवरण युक्त जिनवन है ।। २१५८ ।१
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सीवाए रखिए, जिन-भवणं भद्दताल वन मक्के मंदर दिसा अर्थ :- भद्रावनके मध्यमें सीतानदीको दक्षिण दिशामें पौर मन्दरको पूर्व दिशामें
पुण्योविद वन्जना जुस ।।२१५६ ।।
पसावो । गयतभंतरे होबि ।। २१५७१।
चेटु दि ।।२१५६ ।।
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योत्तर एवं नीलगिरि
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सीवा गनिए तर, उत्तर तीरम्मि पनि तीरे ।
पुन्यवि-कम-कुला पटमोर णील दिग्गहंबा य ।।२१५६ ।।
१. द. व. क.ज. प. व. रामास मेमगिरि । २.१. . . . व.उ.बाहुला १.८.. क. . . . गुवा ।