Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
Kẹo ]
तिलोय पणती
[ गाभा २२००-२२०३
अ :- तीसरी भूमि सदृश ही चौथी भूमि है। विशेषता यह है कि इसकी पूर्व दिशा में चार शाल्मलीवृक्ष हैं। जिनपर वेणु एवं वेणुधारो देवोंको चार देवियाँ रहती हैं ।। २१६९ ।। mitate वैर्य श्री gunी हटा
तुरिव पचम-मही, नवरि बिसेसो न सम्मली-रुत्ता' । तत्य हवेति विचित्ता, वाबीओ विविहरुबाझो ||२२००॥
-
चौथी भूमिके सदृश पनियों भूमि भी है। विशेषता केवल यह है कि इस भूमिमें मारमलोवृक्ष नहीं हैं, परन्तु विविध रूपवाली अद्भुत पापिया है || २२०० ।।
-
→
छडीए वग संयो, सक्षम सोलस - सहस्स क्खा, वे जुगस्संग
-
मोए चड दिसाभागे ।
-
▾
.
८००० | ५००० |
अर्थ :- छठी भूमिमें वनखण्ड है और सातवीं भूमिके भीतर चारों दिशाओंोंमें श्रेणु एवं वेणुधारी देवोंके अङ्गरक्षक देवोंके सोलह हजार अर्थात् पाठ-आठ हजार ( ८०००-२०००) वृक्ष हैं ||२२०१ ॥
सामाजिय- देवागं चत्तारो होंति सम्मलि पवणेसारख दिसासु, उत्तर भागम्मि बेग
A
+
क्लाणं ।। २२०१ ॥
-
२००० | २०००t
धर्म :- [ आठवीं भूमिमें | वायव्य, ईशान और उत्तर दिशा भागमें वेणु एवं वेणुधारीके सामानिक देवोंके चार हजार अर्थात् एक-एक देवके दो-दो हजार (२०००-२०००) शाल्मली वृक्ष हूँ ।।२२०२ ।।
-
सहस्सा ।
श्रृंगलस्स ॥ २२०२॥
बत्तीस-सहस्साणि, सम्मति-दक्ाणि अगल- विम्भाए । भूमीए णवमीए
अनंतर
बेय परिसा ॥२२०३॥
| १६००० | १६००० ।
:- भूमिके भीतर भाग्नेय दिशामें बम्यन्तर पारिषद देवोंके बत्तीस हजार (१६००० १६०००) शाल्मलीवृक्ष हैं ।। २२०३ ॥
१. द.म. क.ज.म.रा. पंचमंहिष २५...... लंद था।