Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गया : १६६८-१९७२ ]
माहवारी
श्री
पंडुमरा पुराहितो एवाणि बास-पबिखानि ।
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बर रयण विरवाई, कालागढ़ भूब सुरणि ।। १६६८ ।।
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अर्थ : पुर पाटुकनकं पुरोंकी अपेक्षा दुगुने विस्तारादि सहित उत्तम रत्नोंसे विरचित और कासारु-धूपको सुगन्धसे व्याप्त हैं ।। १६६८।।
तेच्येय सोमपाला, तेलिय मेशाहि बरोहि जुदा । एदाणं मज्सु विबिह - विनोग कोईति ।। १६६६ ।
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- इन पुरोंके मध्य में वे ही (पूर्वोक्त ) लोकपाल उतनी हो सुन्दरियोंसे युक्त होकर नाना विनोद पूर्वक क्रीड़ा करते हैं ।। १६६६ ।।
उम्पलगुम्मा गलिगा, उप्पल-णामा य जम्पसुज्ञ्जलया ।
तबण अग्गि बिसाए, पोक्खररगीओ हवंति चचारि ।। १६७० ॥
पण
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धर्म :- उस बनकी माग्नेय दिशामें उत्पन्नगुरुमा नविना उत्पला और उत्पलोज्ज्वला नामकी पार वामिकायें है ।। ११७० ।।
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पणवीसत्रिय वा रुदावो बुगुण- जोवणायामा ।
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जोयणावगाडा', पक्कं ताओ सोहति ॥१६७१।।
| १६ | २५ । ५ ।
धर्म :- उनमें से प्रत्येक वापिका पच्चीसके आये १२३ ) योजन प्रमाण विस्तार महत, विस्तारको अपेक्षा दुगुनी लम्बाई ( २५ यो० ) और पांच योजन प्रमाण गहराईस संयुक्त होती हुई शोभायमान होती है ।। १८७१ ।।
अलयर-स- अलोहा, वर बेदी- सोरहि परिवरिया |
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कदम रहिया ताओ होणाओ हाणि बस्ती ।।१९७२ ।।
अर्थ :--वे पुष्करिणियाँ जलचर जीवोसे रहित जनसमूहको धारण करनेवाली हैं. उत्तम देवी एवं तोरणों बेटिस हैं, कोचसे रहित हैं और हानि-बुद्धिसे हीन हैं । १९७२ ॥
१. लोपालो । २. द. व. क. ल. य. छ. उ. जपान हो ।