Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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शादर्शक :- आर्य श्री विडि
तिलोमतो
पचास कोस- उदया, कमलो पणुवीस दद दीहता ।
खूब छह शुचा से लिया विवि जन्म घरा ।।१६४२ ।।
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। को ५० । २५ । २५ ।
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or :- विविध वको धारण करने वाले के भवन पचास कोस ऊंचे हैं, पच्चीस कोस
विस्तृत है पोर परीस ही कोस लम्बे है तथा धूप घटोंसे संयुक्त हैं ।। १६४२ ।।
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[ गाथा : १९४२-१६४९
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वर वेवियाहि रम्मा, वर-कंचन- तोरणेहि परियरिया ।
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वर बकज णील मरगय-विदिभिचीहि सोहते ।।१६४३॥
एवं पचाम कोस चौडे अदभुत सुन्दर प्रासाद है ।। १६४५ ।।
अर्थ :- उसम वैदिकामोसे रमणीय और उत्तम स्वर्णमय सोरोंसे युक्त मे भवन उत्कृष्ट वज्र, नीलमणि और मरकतमणियोंसे निर्मित भित्तियां शोभायमान है ।। १६४३ ।। तान भवणाण पुरवो, तेलिय-मारणेण दोणि पावा ।
भुवंत धय बढाया, फुरंत घर रयण-किरणोहा ।। १६४४ ।।
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। ५० । २५ । २५ ।
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धर्म –उन भवनोंके श्रागे इतने ही ( ५० कोस ऊंचे, २५ कोस पौठे और २५ फोस अम्बे) मा संयुक्त, फहराती हुई ध्वजापताकाओं सहित और प्रकाशमान उत्तम रत्नोंके किरणसमूहसे सुसोभितं दो प्रासाद हैं ।। १६४४ ।।
तशी विचित्त-वा, पातारा दिव्य रथण विम्मिविदा | कोस-सय-मेल- उदया कमेण पन्नास-डीह-विस्मिता ।।१६४५ ।। को १०० । ५० । ५० ।
धर्म :- इसके आगे दिव्य रत्नोंसे निर्मित सौ कोस ऊँचे और क्रमशः पचास कोस सम्बे
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जे जेड-दार-पुरको विश्वमहा मंडवाविया
कहिदा ।
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ते खुल्लय - दारेसु हर्बति पद्ध मागेहिं ।। १६४६ । धर्म :- ज्येष्ठ द्वारके मागे जो दिव्य मुख-मण्याविक कहे जा चुके हैं, उनसे अक्षं प्रमाण वाले ( मुख-पादिक ) लघु-द्वारोंमें भी हैं ।। ९४६॥
१. ८. मुदविकहिया में वह देवाधिका ये क.. चाहतेय. हरा कहिदा से।