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________________ १३६ ] - शादर्शक :- आर्य श्री विडि तिलोमतो पचास कोस- उदया, कमलो पणुवीस दद दीहता । खूब छह शुचा से लिया विवि जन्म घरा ।।१६४२ ।। t । को ५० । २५ । २५ । • - or :- विविध वको धारण करने वाले के भवन पचास कोस ऊंचे हैं, पच्चीस कोस विस्तृत है पोर परीस ही कोस लम्बे है तथा धूप घटोंसे संयुक्त हैं ।। १६४२ ।। - [ गाथा : १९४२-१६४९ - वर वेवियाहि रम्मा, वर-कंचन- तोरणेहि परियरिया । · वर बकज णील मरगय-विदिभिचीहि सोहते ।।१६४३॥ एवं पचाम कोस चौडे अदभुत सुन्दर प्रासाद है ।। १६४५ ।। अर्थ :- उसम वैदिकामोसे रमणीय और उत्तम स्वर्णमय सोरोंसे युक्त मे भवन उत्कृष्ट वज्र, नीलमणि और मरकतमणियोंसे निर्मित भित्तियां शोभायमान है ।। १६४३ ।। तान भवणाण पुरवो, तेलिय-मारणेण दोणि पावा । भुवंत धय बढाया, फुरंत घर रयण-किरणोहा ।। १६४४ ।। - ▾ - । ५० । २५ । २५ । 1 धर्म –उन भवनोंके श्रागे इतने ही ( ५० कोस ऊंचे, २५ कोस पौठे और २५ फोस अम्बे) मा संयुक्त, फहराती हुई ध्वजापताकाओं सहित और प्रकाशमान उत्तम रत्नोंके किरणसमूहसे सुसोभितं दो प्रासाद हैं ।। १६४४ ।। तशी विचित्त-वा, पातारा दिव्य रथण विम्मिविदा | कोस-सय-मेल- उदया कमेण पन्नास-डीह-विस्मिता ।।१६४५ ।। को १०० । ५० । ५० । धर्म :- इसके आगे दिव्य रत्नोंसे निर्मित सौ कोस ऊँचे और क्रमशः पचास कोस सम्बे - जे जेड-दार-पुरको विश्वमहा मंडवाविया कहिदा । , ते खुल्लय - दारेसु हर्बति पद्ध मागेहिं ।। १६४६ । धर्म :- ज्येष्ठ द्वारके मागे जो दिव्य मुख-मण्याविक कहे जा चुके हैं, उनसे अक्षं प्रमाण वाले ( मुख-पादिक ) लघु-द्वारोंमें भी हैं ।। ९४६॥ १. ८. मुदविकहिया में वह देवाधिका ये क.. चाहतेय. हरा कहिदा से।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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