________________
सानिमा...
दिसामा र गाषा : १९३७-१९४१ ] चउत्थो महाहियारो
:-पोठके ऊपर विविध प्रकारके मणियों एवं रत्नोंसे राषित घोर अनेक प्रकारके पारों एवं धष्टानोसे युक्त चार योजन ऊँचे स्वर्णमय खम्भे हैं ।।१६३६॥
सम्वेत पभेस, महाषया विविद - वच्या • रमनिम्ना ।
नामेण महिवधया, असराय - सिहर - सोहिल्ला ॥१९३७।।
म :-- सब छम्भोंके ऊपर अनेक प्रकारके वोंसे रमणीय और शिवाररूप तीन छबोंमे सुखोमित महेन्द्र नामकी महावनाएं हैं ।।१९३७॥
पुरखो' महायपारणं, मयर - ममुहेहि मुस्क-मलिलामो ।
बतारो पावोरो, कमसुप्पल - कुमुन - छम्माओ ॥१९३८।।
पर्व:-महाध्वजापोंके सम्मुख मगर मावि जल-जन्तुओंसे रहित, मल-मुक्त और कमल, उत्पल एवं कुमुदोंसे व्याप्त चार वापिकाएं हैं ।।१९३८।।
पगास - कोस - बासा, पत्तेयं होति गुण - दिग्छता । बस कोसा अबगाढा, पामोओ वेबियादि - जुत्तायो ।।१९३६॥
।को ५० । १०० । गा १० । म:-वे विकादि सहित प्रत्येक यापिका पचास कोस बिस्तृत. सौ(1) कोम सम्यो और इस कोस गहरी है ॥१६३६||
जिनेन्द्र भवन, कोड़ा भवन एवं प्रासादों का वर्णनपापी बहुमाझे दुर्षि एक्को जिनिव - पासायो । विपरिव-रमण · हिरगो, कि बहुसो सो गितवमानो ॥१९४०॥
प: पापियोंके बहुमध्यभागमें प्रकाशमान रत्नकिरणोंवाला एक जिनेन्द्र-प्रासाद स्थित है 1 बहुत कएनमें क्या? वह जिनेन्द्र-प्रासाद निरूपम है ।।१६४०॥
तसो वहाउ परदो, पुष्तर - दक्षिणेसु भागेसु।
पासावा रयणमया, देवागं कौरमा हॉसि ॥१९४१।।
मर्म:-पश्चात् वापिकानों के आगे पूर्व, उत्तर और दक्षिण मागोंमें देवोंके रत्नमय कौड़ा-भवन है ।।१६४१।।
१. ब. क. उ. उ. पाटो महारहाणं, इ. स. अ. पुण्या महामार्ण ।