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________________ गाया : १९४७- १६४१ ] ततो पुरदो बैनी चेट्टदि चरियट्टालय - त्यो महाड़िया रो एवम वेठिवून' सम्वनि गोउर दारेहि कनयमई | १६४७।। वर्ग:- इसके आगे मार्गों, अट्टालिकाओं मोर गोपुर-द्वारों सहित स्वर्णमयी वेदी न सबको वेलित करके स्थित है || १६४७ ।। तीए पुरवो वरिया, तुहि कथय रयण पंहि । बेदुति षड-बिसासु, बस पयारा धया मिरुवमाणा ॥१६४८ ॥ - - - वर्ग : - इस वेदोके आगे बारों दिशाओं में स्वर्ण एवं रत्नमन उन्नत बम्भों सहित यस प्रकारकी श्रेष्ठ अनुपम ध्वजाएँ स्थित है || १६४८ हरि-रि-वस जगाहिय-सिसिसि-रवि-हंस-कमल- वक्रु-धया । अट्ठुसर सय संभार, तेलिया खुल्ला ||१६४६ ॥ प · - [ ५३७ :- सिंह, हाथी, बैल, गरुड, मोर, चन्द्र, सूर्य, हंस, कमल पौड़ कविता युक्त ध्वजाओंमेंसे प्रत्येक एकसो आठ-एकसो बाठ और इतनी ही लघु-ध्वजाएं भी है॥१४६॥ चामीयर पर बेदी, एवाणि वेटिन' बेट्टे दि + विष्फुरिव रयन किरथा, चल- मोर दार रमणिक्या ।। १५० ।। :--प्रकाशमान रटनकिरणोंसे संयुक्त और चार गोपुरद्वारोंसे रमणीय स्वर्णमय उत्तम [eat] इनको पेटिस करके स्थित है ।।१६५० 11 · - से कोसाथि तुरंगा, वित्पारे घणूणि यंत्र सया । विष्फुरिव धय-बडाया', फलिमयाजेय बर । को २ । ६५०० | दो कोची, चिसो धनुष पौड़ी, फहराती हुई ध्वजापताकाओं सहित यह वेदी स्फटिक मणिमय अनेक उत्तम मित्तियोंसे संयुक्त है ।।१९५१ ।। भिती ।।११५१ ।। ........ दि १.व....प, जं. ४. ६. म. म. बस महाया क बद दावा, व.जब ब २.व.उ.दिल जय भेटिए ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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