Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपणती
[गामा : १५२५-१५२९ आपल्स-मास हा मार्ग पि । सत्त- सया पणवायरहिया तिमि बिय कलामो ॥१७२५॥
। १७५५ । । अ :-उसकी पाव-मुखा छह हजार सातसो पचपन योजन और सीन कला ( ६७५५१ योजन ) प्रमाण है ।।१७२५।।
मवसेस • बमलगाओ, सरिसायो सुसमवुस्समेन पि ।
गरि 'अहिद • स्वं, परिहीषं हारिण - मोहिं ।।१७२६।।
म :-- इस क्षेत्रका भेष वर्णन सुधमदुःषमा कालके सहश है । विशेषता केवल यह है कि वह क्षेत्र हानि वृद्धिसे रहित होता इबा एक सट्टा ( अवस्थित } रहता है ।। १७२६।।
हैमयत क्षेत्रस्य शब्दबान् नामिगिरिका प्ररूपणतपोते गहुमो, चेटुदि सहावपि तिनाभिगिरी। जोपण • सहस्स - उपमो, लेत्तिर-चासो सरिस - यो ।।१७२७।।
।१०.०१०००। प्रर्ष:-इस क्षेत्रके बहमध्यभाममें एक हजार योजन ऊंचा और इतने ( १... पो.) ही विस्तार-बाबा, सहश-गोल श्रद्धावान् ( शम्यवान् ) नामक नाभिगिरि स्थित है ।।१७२।
सम्बत्य सस्स परिही, गितोस - सयाह तह य शसवी ।
सो पल्स-सरिस-ठाणो, करपयममओ' 'घट्ट - विजयहो ।।१७२८।।
प्रर्भ :--उस सम्पूर्ण पर्वतकी परिधि इकतीससी बासठ योजन प्रमाण है तथा वह रह विजयाचं पल्पके सदृश माकारवाला है और करकमय है ।।१७२८||
एक- सहस्सं पव-सयमेक-सहसंच सग-सया पन्चा । सबबो मह" - • मझिम - रिपारा तस्स अवसरस ॥१७२६॥
।१०००। ५०० । १२०० । ७५.
पाठान्तरम्
... परिषद । २. द. 4.5.. म. मवी। 14. वह । ४. प. प.ब.पा. अपर।