Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाणा : १३१५-१३१६] पठत्थो महाहियारो
[ ३८५ प्र:-पूर्वजन्ममें किये गये तपके बससे भरतादि चक्रवतियोंकी आयुषाशालाओंमें सोकको आश्चर्य उत्पन्न करनेवाला चकरल उत्पन्न होता है ।।१३१४॥
चक्कुप्पत्ति · पहिता, पूर्ण काम मिणरियानं ।
पन्छा विवप • पयारणं, ते पुम्ब - रिसाए हुवति ॥१३१५॥
प्र:-पक्रकी उत्पसिसे अतिभय हर्षको प्राप्त हुए वे चकवर्ती जिनेन्द्रोंकी पूजा करके पश्चात् विषयके निमित्त पूर्व-दिशामें प्रपारण करते हैं ।।१३१५॥
सुरलिए तीर, परितनं अति पुष - विभाए ।
मरुदेव - णाम • मन्ने, गो कासावो जावमुद्धजलहिं ।।१३१६।।
भई :- ( चक्रवती ) गङ्गानदीके तटका सहारा लेकर पूर्वदिशाम जाकर और वहाँ महदेव नामक देवको साथकर ( वामें करके ) कुछ काल, उपसमुह-पर्यन्त जाते हैं ।।१३१६॥
गंगा सम्बन्धी विम्यवनमें पठात्रअपरिसिजण गंगा - उबवण - बेधोए तोरणारे । उत्तर - मुहेण परिसिय, घरंग • बलेग संजचा ।।१३१७॥ गंतु पुम्वाहिमहं वीमोनवणस्स वेदियाबारे ।
सोबाणे चरिकर्ष, गंगा • वारम्मि' गमछति ॥१३॥
म -इसके आगे गङ्गानदी सम्बन्धी उपवन-वेदोमें प्रवेश न करके चतुरङ्गवालसे संयुक्त होते हुए वे पक्रवर्ती उत्तरदारसे तोरणद्वारमें प्रवेश करके पूर्व की ओर जानेके लिए जम्बूद्वीप-सम्बन्धी उपवनवेदिकाके द्वारवाला सीड़ियों पर बढ़कर गङ्गाद्वारमें होकर जाते हैं ।।१३१७-१३१८॥
गतगं लोलाए, तलिम्मा - रम्म - बिना - ब-मण्झे ।
पुख्खाबर - आपामे, घरंग - बलानि भन्छति ।।१३१६॥
मर्थ:-इसप्रकार लीलामापसे जाकर पूर्व पश्चिम पर्यन्त लम्बे नदी-सम्बन्धी रमणीय एवं दिष्य वनमें चतुरङ्गसेना सहित उहर जाते है ।।१३१६।।
...ब. क.
य. न. सासि |