Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
तिलोयपमाती" [ गामा : १४२६-१४२९ पलोम-वासुदेवप्पडिसत्रणं नागाव मविलीपंच निगवे रति, सबा पंच आहुपुग्गीए । सेयंससामि - पहवि, सिविट्ठ - पमुहा म पत्ते का ॥१४२६॥ ____ बलदेव. वासुदेव एवं प्रतिशत्रुभोंको जाननेके लिए संधि
मय:-विष्ठ आदिक पाच नारायणोंमेंसे प्रत्येक नारायण क्रमशः प्रेयांसस्थामो आदिक पांच तीथंकरोंकी बन्दना करते हैं (प्रारम्पके पांच नारायण क्रमशः श्रेयांसनाव आदि पांच तीर्थकरों के कासमें ही हुए हैं ) ॥१४२६॥
अर • मल्लि • अंतराले, गाववो डरीय-वामो' सो ।
मस्लि - मुरिगसुब्बयाणं, विच्चाले बत- पामोसो ॥१४२७॥
प्रचं:-अर और मल्लिनाथ तीर्थकरके अन्तरालमें वह पुण्डरीक तपा मरिल मोर मुनिसुव्रतके अन्तराख में दत्त नामक नारायण जानना चाहिए ।।१४३७।।
सम्बय • जाम • सामीणं, मन्ने णारायणो समुप्पणी।
गेमि - समम्मि किमगो, एचे गव वासुरेवा य ॥१४२८||
प्र:-मुनिसुव्रतनाथ और नमिनाप स्वामोके मध्यकालमें नारायण (लक्ष्मण) मा नेमिनाथ स्वामौके समयमें कृष्ण नामक नारायण उत्पय सए थे। ये नो वासुदेव भी कहलाते हैं ॥१४३५॥
बस सुग्ण पंच केसर, छस्समा केसि सुन्ग केसीमो । तिय-सुन्णमेक-केसी, वो सणं एक केसि तिय सुगं ॥१४२६11
| मंदृष्टि अगले पृष्ठ पर देखिये ]
१.द...ब.प.च, पामार। २.द.......
मम