Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : ७०७-७११ ]
अस्सजे
जिसे रिष जावं,
बंद
महाहियारो
जय नेमिस्स व
अर्थ :--- नेमिनाथको मासोज शुषला प्रतिपदाके पूर्वा चित्रा नक्षत्रके रहते ऊर्जयन्तगिरिके शिखर पर केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।।७०७॥
विसे बहुत उत्पो बिसाहू- रिक्वम्मि पास नाहस्स | केवलणाणं समुपणं ॥ ७०८ ।।
सकपुरे
पुग्वण्हे
गिरि- सिहरे ।
केवलं नाणं ॥ ७०७ ॥
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अर्थ :- पारनाथको चैत्र कृष्णा चतुर्थी के पूर्वाह्न में विशाखा नक्षत्रके रहते शक्रपुरमें केवलज्ञान उत्पन्न हुया | २७०८||
बसाह -सुबक-दसमी, हत्ते रिक्सम्म थोरणात्स । 'रिजुकूल-नदी-तीरे, प्रवरहे केवलं जाणं ।। ७०१ ॥
१. व. ऋकून ४. म. य. उ. तित्वकत्तारं ।
अयं :-- वीरनाथ जिनेन्द्रको वंशाख शुक्ला दसमीके अपराद्धमें हस्त नक्षत्रके रहते ऋजु कूला नदीके किनारे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।। ७० ।।
तोरोंके केवलज्ञानका अन्तरकाल --
कोमार- रज्जाकुमत्थसयमानम्ति केवलणापती अंतरा
पुम्बिलाणं' कुमार - रम्नतं ।
जणणंतरेसु पुह पुह, मायकाल अवशिय 'पछिल्ल- तित्मकत्तानं * ॥ ७१० ॥ ॥
मे लिये
- सा ५० ल को । व ८३११०१२ ।
संभ = मा ३० ल को जंगारिए ३ वास २ ।
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१६६
होदि । जिनिया ॥७११।
२. ध. न. रु. व. प
५. . . . ज य त पर्णसमान विगिदाण
1. C. 4. 5. T. v. 7. grami i