Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
३२२ ।
तिलोयपण्यतो [गामा : १०६-१०६२ अर्म:-आशीविष और दृष्टिविष तथा क्षोरखपी, मधुनवो, अमृतस्नबी एवं सपिनवी ऐसे दो तवा बार क्रमशः रस ऋद्धिके छह भेव होते हैं ।।१०२८॥
आशीविष-ऋद्धिमर इति मणि जीवो, मरेइ सहस चि जोए सत्तीए ।
तुपकर-सव-व-मुणिमा, आसौविस-णाम-रिसी सा ॥१०८६॥
म :- जिस ऋद्धिके प्रभावसे दुष्कर-तप युक्त मुनिके द्वारा 'मर गानों' इसप्रकार फहने पर जीव सहसा मर जाता है, वह प्राशीविष नामक ऋद्धि है ||१०||
दृष्टिविप-ऋद्धिजीए जीओ विट्ठो, महेसिणों रोस - भरिय - हिएण।
हि - बट्ठो म मरिदि, दिदिविसा पाम सा रिती ॥१०६०।।
अपं:-जिस ऋदिके प्रभावसे रोष युक्त हवयवासे महर्षि वारा देखा गया जीव सर्प द्वारा काटे गयेके सहा मर जाता है वह दृष्टिविष नामक ऋद्धि है ।।१०६०।
___ क्षीरस्रवी-ऋद्धिकरपल - गिविक्षसाणि', रुक्खाहारादिपाणि समकालं ।
पावंति खोर - नावं, जीए लौरोसबी रिती ।।१०६१।।
मर्ष :-जिससे इस्तठल पर रखे हुए स्खे आहारादिक तत्काल ही दुग्ध-परिणामको प्राप्त हो जाते हैं, वह सोरस्रवी-ऋद्धि है ॥१०११॥
महवा दुस्सपाहुरी, जोए मुणि - अयण - सवण'मेतण ।
पसमावि गर - सिरियाणं, स थिय शीरासपी रियो ॥१०६२॥
वर्ष : अपवा, जिस ऋदिसे मुनियों के सपनों के श्रवणमासे ही मनुष्य-तियोंके दुःसादिक शान्त हो जाते हैं, उसे क्षीरस्रवी-ऋछि ममझना चाहिए ।।१०९२।।
१. .. 3, निविताएं। २, द. .. क. प्र. शदिवाण। 1.... ज.म.न. समय।