Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपण्णत्तो
ऋषभादिक-जिनेन्द्रका तीर्थप्रवर्तन काल --
पुम्भाणि सायर उवमान कोडि लक्झाणि । पन्यास तित्पबट्टण कालो चसहस्स सिट्टि १२६१।।
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सा ५० स को पुष्वंग १ |
भव
पवन का
वर्ष :- भगवान् सागर- प्रमाण कहा गया है ।। १२६१ ।।
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उबमान कोडि लक्खामि ।
पुरुवंग-राय-खुवाई, समुद्द ती थिए सो कालो, अजिय जिमिवस्स भावन्यो ।।१२६२॥
[ षा : १२६१-१२६४
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१. व. म. म. न. रिट्ठा ।
अधिक पंचास लाख करोड़
सा ३० ल को पुरुषंग ३ |
अर्थ :- अजितनाथ जिनेन्द्रका तीर्थ प्रवतंनकाल तीन पूर्वाग सहित सीस साख करोड़ सागरोपम प्रमारण जानना चाहिए ।। १२६२।।
- पुब्वंग -जुबाई, समुद्र उवमान कोडि लक्खाणि ।
बस मेलाई भनियो, संभव सामिस्स सो कालो ।। १२६३॥
स १० ल को । कुवंग ४ ।
अर्थ :- सम्भवनाथ स्वामीका वह काल बार पूर्वाङ्ग सहित दस लाख करोड़ सागरोपम प्रमाण कहा गया है ।। १२६३ ॥
च-पुरुवंग जुदाई, वारिधि-उपमाण कोडि- लक्खानि
णवमेतारि कहियो, गंदा सामिस्स सो समय ।। १२६४ ।।
साल को पुष्वंग ४ ।
:- अभिनन्दन स्वामीका वह काल चार पूर्वाङ्ग सहित नौ लाख करोड़ सागरोपमप्रमाण कहा गया है ।। १२६४ ।।