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________________ ३७२] तिलोयपण्णत्तो ऋषभादिक-जिनेन्द्रका तीर्थप्रवर्तन काल -- पुम्भाणि सायर उवमान कोडि लक्झाणि । पन्यास तित्पबट्टण कालो चसहस्स सिट्टि १२६१।। + सा ५० स को पुष्वंग १ | भव पवन का वर्ष :- भगवान् सागर- प्रमाण कहा गया है ।। १२६१ ।। - - उबमान कोडि लक्खामि । पुरुवंग-राय-खुवाई, समुद्द ती थिए सो कालो, अजिय जिमिवस्स भावन्यो ।।१२६२॥ [ षा : १२६१-१२६४ - १. व. म. म. न. रिट्ठा । अधिक पंचास लाख करोड़ सा ३० ल को पुरुषंग ३ | अर्थ :- अजितनाथ जिनेन्द्रका तीर्थ प्रवतंनकाल तीन पूर्वाग सहित सीस साख करोड़ सागरोपम प्रमारण जानना चाहिए ।। १२६२।। - पुब्वंग -जुबाई, समुद्र उवमान कोडि लक्खाणि । बस मेलाई भनियो, संभव सामिस्स सो कालो ।। १२६३॥ स १० ल को । कुवंग ४ । अर्थ :- सम्भवनाथ स्वामीका वह काल बार पूर्वाङ्ग सहित दस लाख करोड़ सागरोपम प्रमाण कहा गया है ।। १२६३ ॥ च-पुरुवंग जुदाई, वारिधि-उपमाण कोडि- लक्खानि णवमेतारि कहियो, गंदा सामिस्स सो समय ।। १२६४ ।। साल को पुष्वंग ४ । :- अभिनन्दन स्वामीका वह काल चार पूर्वाङ्ग सहित नौ लाख करोड़ सागरोपमप्रमाण कहा गया है ।। १२६४ ।।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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