SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७३ गाषा : १२६५-१२६९ यतत्वो महाहियारो बत - पुरुवंगामहिवा, पयोहि उबमान-मदि-मेचार । कोरि-सहस्सा हि पुढं, सो समओ सुमह - सामिस्त १२५५।। ___सा ६००० को । युज्वंग ।। म :-सुमतिनाप स्वामीका वह काल नार पूर्वाङ्ग सहित नम्मे हजार करोड़ सागरोपमा प्रमाण कहा गया है ।।१२६५।। पर-पुबंगभहिया, पीरहि-सवमा सहस्स-रणव-कोही। तित्य - पयन - कालो, परमप्पह - जिनरिवरस ॥१२॥ * सा६... को । पुस्वंग ४ । प्र:-पम जिनेन्द्रका तीर्थप्रयसनकाल चार पूर्वान अधिक नौ हजार करोड़ सागरोपम प्रमाण है ॥२६६।। पर-पुम्बन-मामओ, गह-सम-कीरीमो अहि-उपमाणं । घन्म - पपन कालापमाणमे सुपासस्स ॥१२६७।। सा १०० को । पुवंग ४। मर्थ :-सुपर्वमाप सोकरके धर्मप्रवर्तनकालका प्रमाण चार पूर्वाङ्ग सहित नौ सौ करोड़ सागरोपम प्रमाण है ।।१२६७।। पर-पुब्बंग-अवामओ, रपणायर-उबम-दि-कोजीओ । हिस्सेय • पय - पयन • कालो बापह - निणस्त ॥१२६८।। सा ६० को । पुन्वंग ४। वर्ष :-चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रका निःश्रेयस-पष-प्रवासनकाल पार पूर्वाङ्ग सहित नम्मं करोड़ सागरोपम-प्रमाण है ।।१२६८) भावीस-पुष्वगंगाहिय • पल्ल परस्यभाग - होरखामो। मयरापर - उवमार्ग, भव - कोमोमो समहिलाओ ॥१२६६।। सा-९ को रिण प : पुस्वंग २८ ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy