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________________ ३७४ ] तिलोयपणती [ गाथा : १२७०-१२५४ अग्रेिगल्स पमान, पुम्बाणं सक्लमेक - परिमाणं 1 मोल्लास्तेणि' - पमट्टम • कालो सिरिपुप्फतम्स ॥१२७०॥ 1 घगं पुश्व इल। अर्थ:-श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्रका मोक्षमार्ग-प्रवर्तनकाल अट्ठाईस पूर्वाण अधिक पल्पके चतुर्षभागसे हीन नौ करोड़ सागरोपोंसे अधिक है। इस अधिक कासका प्रमाण एक साल पूर्व हे ॥१२६६-१२७०।। पलियोबमब-समहिप-सोहि-उवमान एक-साथ-सौगा। रयणापरुषम - कोडी सोयलदेवस्स मदिरिता ॥१२७११॥ सा १ को रिण सा १००।१। अदिरेगरम पमान, पणुदीस - सहस्स हाँति पुग्धारिख । रोम महासायि पर परिहीया ॥१२७२॥ वर्ण पुम्वाणि २५००० । रिण व ६६२६००० । वर्ष :--गीतलनाथ जिनेन्द्रका तीर्थ-प्रवर्तनकाल अर्घ-पस्पोपम और एक सौ सागर कम एक करोड़ सागरोपम प्रमाण कालसे अतिरिक्त है। इस अतिरिक्त कालका प्रमाए। ध्यासठ माख छम्बोस हजार वर्ष कम पच्चीस हजार पूर्व है ।।१२७१-१२७२।। इगिवीस-लबम-बम्छर-विरहिए-परूतस्स ति-भारणेला । वजयन-उहि-अवमा, सेयंस- जिस तित्य • कत्तितं ॥१२७३॥ सा ५४ वा २१ ल । रिण प। मर्ष :-श्रेयांस जिनेन्द्रमा तीर्थ-कर्तृवकास इषकीस लाख वर्ष कम एक पस्यके तीन चतुर्पानसे रहित पौवन सागरोपम-प्रमाण है ।।१२७३॥ घडवष्ण-साल-बच्छर-णिय-पल्लेण पिरहिवा होति । तीस महम्मद - उपमा, सो कालो बामपुवस्स ।।१२७४।। सा ३.८५४ स । रिण प ।। १. द. मोवयम्सेण:
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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