Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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३२. ]
तिलोयपणती [ गामा : १०-१-१० प:--विस सिके प्रभावसे ( अधिक लार, कफ, मक्षिपस, मोर नासिकामल गोत्र ही जीवोंके रोगोंको न करते है, वह क्षेलौषधि-ऋषि है॥१०८०॥
___ जल्लोषधि छाति-- सेयजसं अंगरयं, जल्लं भांति जोए तेगापि ।
जीबाग रोग • हरणं, रिडी जल्लोसही मामा ।।१०५१॥
मर्म :-स्वेदजस ( पसीना ) के आश्रिस ( उत्पन्न होने वाला ) परीरका ( मरण) भामबल कहा जाता है। जिसका प्रभाव से उससे भी जीवोंके रोग नष्ट होते हैं, वह जल्लोवधि-ऋद्धि है ।।१०८॥
मलौषधि-ऋद्धिजोहो । बंत • पासा • सोतावि-मल पि जोए सत्तौए ।
जीवाण रोग • हरणं, मलोसही गाम सा रिखी ॥१०२॥
प्रपं:-जिस बक्तिसे जिवा, मोठ, दास, नासिका और प्रोत्रादिकका मल भी जीवोंक रोगोंको दूर करनेवाला होता है वह मनौषधि नामक ऋद्धि है ॥१०६२।।
विडऔषधि-ऋद्धिमुत्त-पुरोसो पि पुलं, बावण-बहुजीव-वाहि-संहरणा ।
नोए महामुनी, विसही नाम सा रिती ॥१०॥
प्रर्ष :-जिस ऋदिक प्रभावसे महामुनियोंका मूत्र एवं विष्ठा भी जीयोंके बहस भयामक रोगोंको नष्ट करनेघाला होता है, वह बिडौषधि नामक ऋदि है ।।१०८३॥
__गोषधि ऋद्धि - जोए पस्स-अलाणिल-रोम-महाबोणि' बाहि • हरपाणि । दुमकर • सब • सुशाणं, रिसो सम्बोसही नामा ॥१४॥
१. २. ब. क. ज. प. उ. पहादीरिए।