Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपाणती गाथा : १२१८-१२२१ सिब-सरामी-पदोसे, सावन-मासम्मि सम्म • भासते। सम्मेरे पासचिनो, छत्तीस - दो गयो मोर ॥२१॥
३६ । वर्ष : पार्श्वनाथ जिनेन्द्र श्रावण मासमें शुक्लपक्षकी सप्तमीके प्रदोष-कालमें अपने जन्म ( विशाचा ) नक्षत्रके रहते छत्तीस मुनियों सहित सम्मेदशिखरसे मोशको प्राप्त हुए है ।।१२१८॥
करािय - किहे पोति, पम्से सादि-बाम-क्यते। पावाए गयरीए, एक्को बोरेसरो सिद्धौ ॥१२१९॥
मई महाशियेश्वर अात संवा शाखासीको भूलो ताति नामक नक्षत्रके रहते पावामगरीसे प्रफले ही सिद्ध हुए हैं ।।११।।
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[ तालिका : २६ मगले पृष्ठ ३१८-३५६ पर देखिये ]
ऋषमादिजिनेन्द्रों का योग-निवृत्ति कालउसहो चोइसि विसे, बु- दिणं वीरेसरस्स सेताम् । मासेन य विवि प्रोगावो मुक्ति - संपन्नो ॥१२२०॥
:-ऋषभनिनेन्द्रने यह दिन पूर्व. वीर जिनेन्द्रने दो दिन पूर्व पोर शेष तीर्थंकरोंने एक मास पूर्व योगसे निवृत्त होनेपर मोम प्राप्त किया है ।।१२२०
तीर्थकरोंके मुक्त होनेके आसम-- उसहो य पापुल्यो, मी पल्लंक - 'मज्ञमा सिद्धा। काउस्सग्गेच जिला, सेता मुति समावस्या ।१९२१५
1. ५. ताया।