Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोत्पमाती [गाया : १२१-१२१३ प:-अनन्तमाप स्वामी चैत्रमासके कृष्पक्ष सम्बन्धी पश्चिम दिन (अमस्या) को प्रदोष-कालमें अपने जन्म ( रेवतो ) नमसमें सम्मेदशिखरसे सात हजार मुनियों के साथ मोक्षको प्राप्त हुए है ॥२०॥
अदुस्स किन्ह - चोसि - पजसे जन्म - भम्मि सम्मे। सिबो सम्म - जिभियो, स्वाहिय - प - सएहि जो ॥११॥
। ८०१ । म:-धर्मनाथ जिनेन्द्र ज्येष्ठ-कृष्णा चतुर्दषीको प्रत्यूष ( रात्रिके अन्तिम भाग-प्रभात) कालमें अपने जन्म { पुग्य )
न याठ Frमुचियोचर हिर कि हुए है।१२१०॥
अटुस्स किन्ह'-बोहसि-पदोस-समम्मि बम्प-नगमत। सम्मेरे संति - निगो, नव-स्य-भुषि-संबो' सियो ॥१२११॥
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प्र :-शान्तिमाय जिनेन्द्र ज्येष्ठ-कृष्णा-चतुर्दशी को प्रदोषकालमें अपने जन्म (भरणी ) नक्षत्र में नोसो मुनियों के साथ सम्मेदशिखरसे सिद्ध हए ।।१२।
पासाह-सत-पारिव-पारोस-समपरिह बन्न सक्खसे। सम्मेवे कुच - जिनो, सहस्स - सहिदो गरी सिद्धि ।।१२१२॥
।१०००।
मर्थ :-कन्धु जिनेन्द्र वैशाख-शुक्ला प्रतिपदाको प्रयोष-कालमें अपने जन्म (कृतिका) अक्षयके रहते एक हजार मुनिषोंके साप सम्मेदशिखरसे सिसिको प्राप्त हुए हैं ।।१२१२॥
घेत्तस्स बस-परिम, विनम्मिनिय जम्मि-मग्नि परसे । सम्मेवे अर • देनो, सहस्स - साहितो गो मोगल ।।१२१३॥
१. द... क. 1. किपदोमे । २. १. प. प. चारदा सिया। ३. ३. क.सा... लिम्म ।