Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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उत्यो महाहियारो प्रथम वेदोका निरूपण
वर-रमन-के-सोरण- घंटा - जालादिएष्टि बुत्ताओ । प्राविम-सेवाओ तहा, सव्वेषु वि समवसरणे ॥८०॥ भारांक : आता श्री समर भी शामि
गापा : ८०-८०३
:- सभी समवसरणों में उत्तम रस्त्रमय ध्वजा, तोरण मोर ष्टाओंके समूहादिकसे युक्त प्रथम बेदियां भी उसीप्रकार होती हैं ८००||
गोर-बार वालपवी सव्वाण वेबियाण तहा |
ठुतर सय-मंगल-नव-निहि-व्या
२४
:- सर्व वेदियोंके गोपुरद्वार, नो निधियों, पुतलिका इत्यादि तवर एक तो आज मंगल द्रव्य पूर्वके सहल ही होते हैं ॥०१॥
नबर बिसेसो गिय-जिय-मूलीसालाण मूल- देहि । भूलोवर मागे, समान वासाओ
पुणं व ॥ ८०१ ॥
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पं. ६.ब.क. प. म.उ. तवा ।
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| पत्रम-बेटी समला !
अर्थ :-- विशेषता मात्र यह है कि इन वेदियोंके मूल और उपरिम मागका विस्तार अपने-अपने लिसालोंके मूल विस्तार के सरत होता है ।। ५०२ ||
| प्रथम वेदोका कमन समाप्त हृषा ।
वाइय - खेसर' तो हवंति 'वर सच्छ-सलिल- पुणाई । मि- पिय-जिर- उबएहि, बल-भजिवेहि सरि-हिरारिष ।८०३ ॥
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३. ए. मेलाणि ।