Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : to EFFEy :- ? त्यो बहाहियारी जो ६ [३१७
म :-जिस ऋषिके प्रभावसे मुभिजन अनुपम एवं वृद्धिङ्गत तप सहित, तीनों लोकोंको संहार करनेकी शक्ति युक्त; कष्टक. पिला, अग्नि, पर्वत, घुमा सपा उस्का आदिके बरसानेमें समर्थ एवं सहसा सम्पूर्ण समुद्रके जस-समूहको सुखानेकी शक्ति भी संयुक्त होते हैं, वह घोरपराक्रम-सपऋद्धि है ॥१०५७-१०६८11
अघोर-ब्रह्मचारिस्व-ऋद्धि--- जीए म होति मुनिणो, सम्मिवि चोर-पहुवि-बाथान । कलह - महायुद्धादी', रिद्धी माधोर • बम्हसारिता ॥१०६६।।
मम' :-जिस ऋद्धिसे मुनिके क्षेत्रमें चौरादिक बाधाएँ और कलह एवं युद्धादिक नहीं होते है, वह अघोरखाचारित्व ऋद्धि है ।।१०६६।।
उस्कस्स - खोयसमे, पारिचावरण - मोह - कम्मरस ।
जा बुस्लिमणं गासइ, रिखी साघोर - बम्ह - वारिसा ११०७०॥
अ -चारित्र-निरोधक मोहकम ( पारिवमोहनीय ) का उत्कृष्ट क्षयोपशम होनेपर जो ऋवि दुस्स्वप्नको नष्ट करती है. वह प्रपोर-सह्मवारित्न-ऋद्धि हे ।। १०७०॥
अहवा-- सम्ब - गुलेहि अघोरं, महेसिणो बम्हसह - पारितं । विप्फुरिदाए जीए, रिद्धी साघोर सम्ह • पारिसा ॥१०७१।।
। एवं तवारिधी समता। पर्व: अथवा
जिस ऋद्धिके पाविर्भूत होनेसे महषिषन मब गुणों के साथ अघोर । अदिनवर ) ब्रह्मचर्य का प्रावरण करते हैं, वह अघोर-बापारिस्व-ऋदि है ।।१०७१।।
। इसप्रकार सप-ऋद्धिका कथन समाप्त हुमा ।
१. ब. क.
प. उ. छुहाटी।